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प्र. ३- तीर्थकर कौन होते है और किस जगें होते है और किस काल में होते है.
न. - जे जीव तोर्थकर होनेके नवसें तोसरें नव में पहिलें वीस स्थानक अर्थात् वीस धर्मके कृत्य करे तिन कृत्योंसे बमा नारी तीर्थंकर नामकर्म रूप पुन्य निकाचित उपार्जन करे तब तहांसे काल करके प्रायें स्वर्ग देवलोकमें उत्पन्न होते है तहांसें काल कर मनुष्य क्षेत्र में बहुत जारी रिद्धि परिवारवाले उत्तम शुद्ध राज्यकुलमें उत्पन्न होते है जेकर पूर्व जन्म में निकाचित पुन्यसें जोग्य कर्म उपार्जन करा होवे तबतो तिस नोग्य कर्मानुसार राज्य जोगविलास मनोहर जोगते है, नही जोग्यकर्म उपार्जन करा होवे तब राज्यत्नोग नही करते है. इन तीर्थंकर होनेवाले जीवांको माताके गर्भ मेंदी तीन ज्ञान अर्थात् मति श्रुति अवधी अवश्यमेवही होते है, दीक्षाका समय तोर्थकरके जीव अपने ज्ञानसेंही जान लेते है जेकर माता पिता विद्यमान होवें तबतो तिनकी श्राज्ञा लेके जेकर माता पिता विद्यमान नही होवें तब
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