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उ.-जिनशासन और द्वादशांग यह एकहीके दो नामहै इस वास्ते द्वादशांगका सार श्राचारंगहै और आचारंगका सार तिसके अर्थका य. पार्थ जानना तिस जाननेका सार तिस अर्थका यथार्थ परकों नपदेश करना तिस उपदेशका सार यहकि चारित्र अंगीकार करना अर्थात् प्राणिवध १ मृषावाद र अदत्तादान ३ मैथुन ४ परिग्रह ५ रात्रिनोजन ६ इनका त्याग करना इसको चारित्र कहतेहै अथवा चरणसत्तरीके ७० सत्तर नेद और करण सत्तरिके 3 सत्तर नेद ये एकसौ चालीस १४० नेद मूल गुण नुत्तर गुणरूप अंगीकार करे तिसकों चारित्र कहते है तिस चारित्रका सार निर्वाणहै अर्थात सर्व कर्मजन्य नपाधिरूप अगिसे रहित शीतलीनूत होना तिसका नाम नि
ाण कहतेहै तिस निर्वाणका सार अव्याबाध अर्थात् शारीरिक और मानसिक पीमा रहित सदा सिह मुक्त स्वरूपमे रहना यह पूर्वोक्त सर्व जिनशासनका सारहै यह कथन श्री आचारंगकी नियुक्तिमेहै.
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