Book Title: Jain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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५८ / जैनदर्शन में निश्चय और व्यवहार नय : एक अनुशीलन
श्रावक दानपूजा आदि के द्वारा तथा मुनि ज्ञान, तप आदि के द्वारा जो जैन शासन की प्रभावना करता है उससे प्रभावना गुण प्रकट होता है, अत: इसे उपचार से प्रभावनागण नाम दिया गया है। इसके बल से मिथ्यात्व-कषाय आदि समस्त विभावपरिणामरूप परमतों के प्रभाव को नष्ट कर शुद्धोपयोगरूप स्वसंवेदनज्ञान के द्वारा विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावात्मक निज आत्मा का अनुभव करना नियतस्वलक्षणसम्मत प्रभावना गुण है।'
हसने आदि की 'हास्य' आदि संज्ञाएँ हसने की नियतस्वलक्षण की अपेक्षा हास्य संज्ञा है। जिस कर्मस्कन्ध के उदय से हास्य उत्पन्न होता है उसकी, कारण में कार्य का उपचार करने से, उपचारत: हास्य संज्ञा है – “हसनं हास:। जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण हस्सणिमित्तो जीवस्स रागो उप्पज्जइ तस्स कम्मक्खंधस्स हस्सो ति सण्णा, कारणे कज्जुवयारादो।"२
भीति की मुख्यतः भय संज्ञा है। जिन कर्मस्कन्धों के उदय से जीव में भय उत्पन्न होता है उनकी, कारण में कार्य का उपचार करने से, उपचारत: भय संज्ञा है - "भीतिर्भयम्। जेहिं कम्मक्खंधेहिं उदयमागदेहि जीवस्स भयमुप्पज्जइ तेसिं भयमिदि सण्णा, कारणे कज्जुवयारादो।"
जीवों का सदृशपरिणाम नियतस्वलक्षण की अपेक्षा 'जाति' है। जिस कर्मस्कन्ध से जीवों में अत्यन्त सादृश्य उत्पन्न होता है उस कर्मस्कन्ध को, कारण में कार्य का उपचार करके, उपचार से जाति नाम दिया जाता है – “जातिर्जीवानां सदृशपरिणामः। ... जत्तो कम्मक्खंधादो जीवाणं भूओ सरिसत्तमुप्पज्जदे सो कम्मक्खंधो कारणे कज्जुवयारादो जादि त्ति भण्णदे।"
कर्मभूमि नियतस्वलक्षण की दृष्टि से कर्मभूमि है। कर्मभूमियों में उत्पन्न मनुष्यों को उपचार से कर्मभूमि संज्ञा दी गई है -- “कम्मभूमीसुप्पण्णमणुस्साणमुवयारेण कम्मभूमीववदेसादो।"५
स्वात्मा का सम्यक् श्रद्धान नियतस्वलक्षणतः सम्यक्त्व है। सम्यक्त्व के साथ उदित रहने से आप्त, आगम और पदार्थों की श्रद्धा में शिथिलता उत्पन्न
१. बृहद्रव्यसंग्रह/ब्रह्मदेवटीका/गाथा, ४१ २. धवला/पुस्तक ६/सूत्र २४/पृ० ४७ ३. वही ४. वही/पुस्तक ६/चूलिका १/सूत्र २८/पृ० ५१ ५. वही/चूलिका ८/सूत्र ११/पृ० २४५
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