Book Title: Jain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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प्रमत्त बन के कर्म न करते अकम्प निश्चय शैल रहे, आत्मज्ञान में लीन किन्तु मुनि तीन लोक पै तैर रहे ।। '
मोक्षमार्ग की अनेकान्तात्मकता / २१५
अर्थात् साधना में अनेकान्त के उल्लंघन से एकान्तव्यवहारावलम्बी भी भवसागर में ही गोते लगाते रहते हैं और एकान्तनिश्चयावलम्बी भी । निश्चय और व्यवहार दोनों का अनेकान्तरूप से ( आवश्यकतानुसार ) अवलम्बन करने पर ही साधक भवसागर से पार होता है ।
संक्षेप में, निश्चयमोक्षमार्ग मोक्ष का साधक है और व्यवहारमोक्षमार्ग निश्चयमोक्षमार्ग का साधक है । निश्चयमोक्षमार्ग के बिना मोक्ष की सिद्धि नहीं हो सकती और व्यवहारमोक्षमार्ग के बिना निश्चयमोक्षमार्ग की सिद्धि असम्भव है। अतः दोनों ही मोक्षसिद्धि के उपाय हैं।
१. निजामृतपान, १२/१११
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