Book Title: Jain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 267
________________ उपादाननिमित्तविषयक मिथ्याधारणाएँ / २३९ कर्मों के अतिरिक्त धर्मादि अन्य द्रव्य उदासीन निमित्त होते हैं, क्योंकि वे आत्मा की स्वभावभूत शक्ति के परिणमन में ही सहयोग देते हैं, न तो उसके परिणमन में बाधा डालते हैं, न उसके विपरीत परिणमन के हेतु बनते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि शुद्धोपादानजन्य कार्य तो उपादानप्रेरित ही होते हैं, किन्तु अशुद्धोपादानजन्य कार्य उपादानप्रेरित नहीं होते, निमित्तप्रेरित ही होते हैं, अर्थात् उनका नियमन निमित्त ही करता है। क्योंकि जब उपादान की अशुद्धता स्वयं निमित्तप्रेरित है, तब तज्जन्य कार्यों का निमित्तप्रेरित होना अनिवार्य है। निष्कर्ष यह है कि किसी द्रव्य को उपचार से निमित्त नहीं कहा जाता, अपितु वह वास्तव में ( नियतस्वलक्षण के अनुसार ) निमित्त होता है, इसलिए निमित्त कहा जाता है । निमित्त के बिना उपादान अपने कार्य की उत्पत्ति में असमर्थ होता है। अतः कार्योत्पत्ति में निमित्त का उतना ही हाथ होता है जितना उपादान का। तथा पुद्गलकर्म धर्मादि द्रव्यों के समान उदासीन निमित्त नहीं हैं, अपितु प्रेरक निमित्त हैं, बल्कि प्रेरक ही नहीं, आक्रामक और घातक निमित्त हैं। - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290