Book Title: Jain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
१४४ / जैनदर्शन में निश्चय और व्यवहार नय : एक अनुशीलन
इसके अतिरिक्त व्यवहारनय के द्वारा निश्चयमोक्षमार्ग के साधक व्यवहारमोक्षमार्ग का भी ज्ञान होता है, जिससे प्रत्येक भूमिका में निश्चयमोक्षमार्ग को ही आश्रयणीय मानने की मिथ्याबुद्धि दूर होती है और प्राथमिक भूमिका में व्यवहारमोक्षमार्ग का अवलम्बन कर जीव अपने को निश्चयमोक्षमार्ग के अवलम्बनयोग्य बनाता है।
इस प्रकार निश्चय और व्यवहार दोनों नय आत्मा के शुद्ध - अशुद्ध रूपों का बोध कराकर मिथ्याबुद्धियों का विनाश करते हैं। अतः सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति दोनों पर आश्रित है। इसीलिये एक प्राचीन गाथा में कहा गया है
जइ जिणमयं पवज्जह ता मा ववहारणिच्छए मुयह । एक्केण विणा छिज्जइ तित्थं अण्णेण उण तच्चं ।।
- यदि जिनमत का प्रवर्तन चाहते हो तो व्यवहार और निश्चय में से किसी को भी मत छोड़ो, क्योंकि निश्चय के बिना परमार्थभूत आत्मा का बोध न हो सकेगा और व्यवहार के बिना तीर्थ प्रवृत्ति सम्भव न होगी ।
-
इस प्रकार परस्परसापेक्ष निश्चय और व्यवहार नयों के अवलम्बन से ही मिथ्यात्व का विनाश और मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति सम्भव होती है। निश्चयनय के अवलम्बन से व्यवहार - विमूढ़ता का विनाश होता है और व्यवहारनय के अवलम्बन से निश्चयविमूढ़ता का ।
साध्यसाधकरूप से भी परस्परसापेक्ष
निश्चयनय द्वारा प्रतिपादित शुद्धोपयोगरूप मोक्षमार्ग के अवलम्बन की सामर्थ्य व्यवहारनय द्वारा प्रतिपादित शुभोपयोगरूप मोक्षमार्ग के अवलम्बन से आती है । अतः दोनों में साध्यसाधक भाव है । इस दृष्टि से भी निश्चय और व्यवहार परस्पर सापेक्ष हैं। निश्चय - मोक्षमार्ग स्वयं की सिद्धि के लिये साधकरूप से व्यवहार- मोक्षमार्ग की अपेक्षा रखता है और व्यवहार- मोक्षमार्ग अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के लिये साध्यरूप से निश्चय- मोक्षमार्ग की आकांक्षा रखता है। इस पर प्रकाश डालते हुए आचार्य जयसेन लिखते हैं
-
Jain Education International
"इस प्रकार वीतरागत्व को ही इस प्राभृतशास्त्र का तात्पर्य समझना चाहिए । वह वीतरागत्व मोक्षसिद्धि में तभी समर्थ होता है, जब निश्चय और व्यवहार नयों का साध्यसाधकरूप में परस्परसापेक्षभाव से अवलम्बन किया जाता है, परस्परनिरपेक्षभाव से अवलम्बन करने पर नहीं । उदाहरणार्थ, जो लोग विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभाव शुद्धात्मतत्त्व के सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान और अनुष्ठानरूप निश्चयमोक्षमार्ग को १. समयसार/आत्मख्याति /गाथा १२ में उद्धृत
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org