Book Title: Jain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 228
________________ २०० / जैनदर्शन में निश्चय और व्यवहार नय : एक अनुशीलन निश्चय-व्यवहार की सापेक्ष उपादेयता यत: निश्चयमोक्षमार्ग और व्यवहारमोक्षमार्ग परस्पर सापेक्ष हैं, अत: अपेक्षाभेद से दोनों उपादेय हैं। मोक्ष का परमार्थमार्ग होने से निश्चयमोक्षमार्ग उपादेय है। निश्चयमोक्षमार्ग का साधक होने से व्यवहारमोक्षमार्ग उपादेय है। किसी एक को सर्वथा उपादेय मानने से संसारभ्रमण और पापबन्ध ही फलित होता है। अत: जो विद्वान् यह मानते हैं कि वस्तु-व्यवस्था समझने के लिए दोनों नय कार्यकारी हैं, किन्तु साधना के लिए एक निश्चयनय ही उपादेय है, उनकी यह मान्यता भ्रान्तिपूर्ण ज्ञानदर्शनस्वभावशुद्धात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुष्ठानरूपनिश्चयमोक्षमार्गनिरपेक्षं केवलशुभानुष्ठानरूपं व्यवहारनयमेव मोक्षमार्गं मन्यन्ते तेन तु सुरलोकादिक्लेशपरम्परया संसारं परिभ्रमन्तीति। यदि पुनः शुद्धात्मानुभूतिलक्षणं निश्चयमोक्षमार्ग मन्यन्ते निश्चयमोक्षमार्गानुष्ठानशक्त्यभावानिश्चयसाधकं शुभानुष्ठानं च कुर्वन्ति तर्हि सरागसम्यग्दृष्टयो भवन्ति परम्परया मोक्षं लभन्ते इति ... ..।" पञ्चास्तिकाय/तात्पर्यवृत्ति/गाथा १७२ १. ( क ) "चिदानन्दैकस्वभावो निजशुद्धात्मैव शुद्धनिश्चयनयेनोपादेयं भेदरत्नत्रयस्वरूपं तु उपादेयमभेदरत्नत्रयसाधकत्वाद्व्यवहारेणोपादेयमिति।" समयसार/तात्पर्यवृत्ति/गाथा ११६-१२० ( ख ) “व्यवहारमोक्षमागों निश्चयरत्नत्रयस्योपादेयभूतस्य कारणभूत्वादुपादेयः ___ परम्परया जीवस्य पवित्रताकारणत्वात् पवित्र: .... ।' वही/तात्पर्यवृत्ति/गाथा १६१-१६३ २. मोक्षमार्ग प्रकट करने का उपाय : तत्त्वनिर्णय/पृ० २७-२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290