Book Title: Jain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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१३६ / जैनदर्शन में निश्चय और व्यवहार नय : एक अनुशीलन
इस कथन में कर्मोपाधिमुक्त शुद्ध जीव तथा उसके केवलज्ञानादि शुद्ध गुणों के संज्ञादिरूप भेद का अवलम्बन कर उन्हें स्वस्वामिरूप से भिन्न पदार्थों की तरह व्यवहृत किया गया है, अत: यह अनुपचरित सद्भूतव्यवहारनय से किये गए परामर्श का उदाहरण है । ' शुद्ध पर्याय और शुद्ध पर्यायी का संज्ञादिभेद भी इस नय का विषय है।
१. “निरुपाधिगुणगुणिनोर्भेदविषयोऽनुपचरितसद्भूतव्यवहारो यथा जीवस्य केवलज्ञानादयो
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गुणा: ।" वही / सूत्र २२५
२. "शुद्धसद्भूतव्यवहारो यथा शुद्धगुणशुद्धगुणिनोः शुद्धपर्यायशुद्धपर्यायिणोर्भेदकथनम्।”
वही / सूत्र २८
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