________________
वस्तु स्वभाव
२५ हैं। धर्म द्रव्यका गुण गति हेतुत्व है। अपनी ही उपादान शक्तिसे जीव तथा पुद्गलको उसी प्रकार गति करने में सहायक होता है जैसे जल मछलीके गमन में सहायक होता है।'
अधर्म द्रव्यका गुण स्थिति हेतुत्व है। अपनी ही उपादान शक्तिसे जीव और पुद्गल यदि ठहरना चाहे तो अधर्म द्रव्य उसी प्रकार सहायता देता है जैसे वृक्षकी छाया पथिकको ठहराने में सहायता देती है।
जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन पाँचों द्रव्यों को अवकाश अर्थात् स्थान प्रदान करने वाला आकाशद्रव्य है। आकाशके इस गुणको अवगाहनत्व गुण कहते हैं।
काल द्रव्यका गुण वर्तनाहेतुत्व है । जीव-पुद्गल धर्म, अधर्म और आकाश इन पाँचों द्रव्योंमें समय-समय पर जो परिवर्तन होता रहता है, उस परिवर्तन में काल द्रव्य निमित्त कारण होता है, जिस प्रकार शीतकालमें छात्रों के अध्ययनमें अग्नि सहकारी या निमित्त कारण है, उसी प्रकार पदार्थों की परिणतिमें काल द्रव्यका वर्तना गुण सहकारी है।
इन चारों द्रव्योंमें प्रत्येकमें अमूर्तत्व और अचेतनत्व गुण भी पाये जाते हैं। अमूर्तत्वका जीवके गुणोंमें और अचेतनत्वका पुद्गलके गुणों में निर्देशन हो चुका है। उपरोक्त चारों द्रव्यों में अमूर्तत्व और अचेतनत्व की यदि पृथक्-पृथक् गणना करें तो आठ गुण और मिल कर चौबीस गुण कहे जा सकते हैं।' ७. जैन मान्य गुणों की न्यायवैशेषिक के गुणों से तुलना
जैन दर्शन के उपरोक्त साधारण तथा असाधारण गुणों के विवेचन से स्पष्ट है कि जैन मान्य गुणोंका स्वरूप न्यायवैशेषिकके गुणोंसे भिन्न है। यद्यपि जैन दर्शनमें न्याय वैशेषिककी तरह गुणोंको द्रव्यके आश्रित और निगुर्ण कहा है। परन्तु न्यायवैशेषिकों की तरह पृथक् पदार्थके रूपमें गणना नहीं की है।
१. द्रव्यसंग्रह, गाथा १७ २. द्रव्यसंग्रह, गाथा १८ ३. वही, गाथा १९ ४. वही, गाथा २ ५. वृहद् नयचक्र, श्लोक १३
(क.) द्रव्याश्रया निर्गुणा : गुणा:, तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ५, सूत्र ४१ (ख.) “द्रव्याश्रय्यगुणवान्..इति गुण लक्षणम्” वैशेषिक सूत्र, अध्याय १, आहिनक १, सूत्र १६
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org