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पुद्गल द्रव्य और पुद्गल की सूक्ष्म स्थूल अवस्थायें
पुद्गलका वह रूप जो खण्ड खण्ड होनेपर भी पुन: मिल जाये "बादर" कहलाता है। जलीय जातिके सभी पदार्थ जैसे घृत, दुग्ध, तैलादि पुद्गलोंको "बादर" कहा जाता है ।' पुद्गलका वह रूप जो देखने में स्थूल हो, परन्तु जो खण्ड-खण्ड न हो सके और हस्तादिसे ग्रहण न किया जा सके, ऐसे छाया, आतप, प्रकाश आदि पदार्थ "बादर सक्ष्म" कहे जाते हैं। स्पर्श, रस, गन्ध, शब्दादिक पुद्गल इससे सूक्ष्म होते हैं, उन्हें "सूक्ष्मबादर" कहा जाता है । ये नेत्रेन्द्रियको छोड़कर शेष चारों इन्द्रियों के विषयभूत पदार्थ होते हैं। जो स्कन्ध इन्द्रियोंसे भी ग्रहण करने में नहीं आते ऐसे कर्म समूहको "सूक्ष्म पुद्गल" कहा जाता है। ये कर्म वर्गणाके योग्य सूक्ष्म स्कन्ध होते हैं। कर्मवर्गणाके अयोग्य और कर्मवर्गणासे भी अति सूक्ष्म द्वयणुक स्कन्ध तकके सभी पुद्गल "सूक्ष्मसूक्ष्म" या "अतिसूक्ष्म" कहलाते हैं। डॉ० हिरियन्नाके अनुसार- सूक्ष्म अवस्थामें रहने वाला पुद्गल ही कर्म है, जो जीवमें प्रविष्ट होकर संसारका कारण बनता है। पूज्यपादजी ने भी कहा है -
“कर्मग्रहणयोग्या: पुद्गला: सूक्ष्मा:, न स्थूला:"७ अर्थात् कर्मग्रहणयोग्य पुद्गल सूक्ष्म होते हैं, स्थूल नहीं । के०के०मित्तल ने भी जैनोंके भौतिकवाद पर विचार करते हुए कहा है कि जैन दर्शनमें कर्मको पौद्गलिक माना गया है ।
दासगुप्तके अनुसार पुद्गल द्रव्य स्थूल रूपसे दिखाई देने वाली सांसारिक वस्तुओंमें और सूक्ष्म रूपसे जीवको दषित करने वाले कर्मों में विद्यमान हैं।' १०. परमाणु
पुद्गल स्कन्धोंका जहाँ अन्त हो जाता है, वह अन्तिम अंश "परमाणु" कहलाता है । परमाणुसे अणुतर, अन्य कोई नहीं होता। यह सभी पुद्गल
१. सप्पीजलतेलमादीया, नियमसार, गाथा २२ २. छायातवमादीया थूलेदरखंधमिदि वियाणीहि, नियमसार, गाथा २३ ३. सुहमधूलेदि भणिया खंधा चउरक्खविसयाय, नियमसार, गाथा २३ ४. सुहमा हवंति खंधा पावोग्गा कम्मवग्गणस्य पुणो, वही, गाथा २४ ५. तब्विवरीया खंधा अइसुहमा इदि परुर्वेदि, नियमसार, गाथा २४ ६. भारतीय दर्शनकी रूपरेखा, पृ० १६४ . ७. सर्वार्थसिद्धि, पृ०४०२ ८. मैटिरियलिजम इन इंडियन थॉट, पृ० १२० ९. दास गुप्त एस.एन.भारतीय दर्शनका इतिहास, पृ० २०४ १०. जस्सण कोइ अणुदरो सो अणुओ होदि सव्व दव्वाणं । जावे परं अणुत्तरं तं परमाणु मुणेयव्वा।
पद्मनन्दि आचार्य, जम्बूद्वीप पण्णति, अधिकार १३, गाथा १७
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