________________
८४
पुद्गल द्रव्य और पुद्गल की सूक्ष्म स्थूल अवस्थायें किसी भी प्रकारसे बाधा संभव नहीं है । यह स्पष्टीकरण कार्मण और तैजस वर्गणामें निर्दिष्ट किया जा चुका है।
__ जैनमान्य पंच शरीरों में से स्थूल शरीरके रूपमें औदारिक शरीर और सूक्ष्म शरीरके रूप में कार्मण शरीरको तो प्राय: सभी दर्शनोंमें किसी न किसी रूप में माना गया है, परन्तु तैजस शरीरका उल्लेख, अन्य दर्शनोंमें जैनोंकी तरह पृथक रूपसे नहीं किया गया। तैजसको प्रतिभा और ओजके रूपमें प्राय: सभी दर्शनोंने स्वीकार किया है । वेदान्तमें भी औदारिक, कार्मण और तैजस शरीरोंको माना गया है। वेदान्तमें औदारिकको स्थूल शरीर कहा है, जो सभी जीवोंके प्राप्त होता है और कार्मण और तैजस नामक शरीरको सूक्ष्म शरीर कहा है जो संसार चक्रमें घूमते हुए जीवके साथ नित्य रहता है । आगामी शरीरके बीज सूक्ष्म शरीरमें ही संचित रहते हैं।
जैन मान्य औदारिक शरीरको वेदान्त, सांख्य और न्यायवैशेषिकादि सभी दर्शनों में स्थूल शरीर कहा गया है, व्यक्त होने के कारण इस शरीरको “व्यक्त" संज्ञा भी दी गई है। सूक्ष्म तथा अव्यक्त होने के कारण कार्मण शरीरको “अव्यक्त” या सूक्ष्म शरीर कहा जाता है, अन्य शरीरोंका कारण होने के कारण इस शरीरको कारण शरीर और लिड्० शरीर भी कहा जाता है । जैनमान्य इन दी शरीरोंका सांख्यादि दर्शनोंसे निम्न प्रकार तुलनात्मक अवलोकन किया जा सकता है - १. जिस प्रकार जैन दर्शनमें औदारिक शरीरको कार्मण शरीरसे भिन्न माना
गया है, उसी प्रकार सांख्य दर्शनमें भी सूक्ष्म शरीर को स्थूल शरीरसे भिन्न माना गया है। जैन मतानुसार यद्यपि दोनों शरीर पौद्गलिक हैं, परन्तु औदारिक शरीरका निर्माण आहारक नामकी वर्गणाओंसे और कार्मण शरीरका निर्माण कार्मण नामकी वर्गणाओंसे होता है । सांख्यदर्शन में भी दोनों शरीरोंका कारण पृथक्-पृथक् माना है । सांख्यने एकको मातृपित जन्य और दूसरों को
तन्मात्रिक कहा है। ३. जैन मतानुसार औदारिक शरीर मत्युके समय छुट जाता है और जन्मके
समय पुन: नवीन उत्पन्न हो जाता है, परन्तु कार्मण शरीर मृत्युके समय
१. जैन, खूबचन्द, ए पीप इन टु जैनिज़म, १९७३,पृ० १९८ २. सांख्यकारिका, नं० ३९
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org