Book Title: Jain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Author(s): Manorama Jain
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 237
________________ पसत्थ प्रशस्त पह पाउग्गलद्धि प्रभु प्रायोग्यलब्धिं पाणा प्राण विकल्प वियुक्त विप्रमुक्त विकलेन्द्रिय विपरीत विषय विशद्धिलब्धि प्राभृत (III) विपय्प विजुज्ज विप्पमुक्को वियलिंदी विवरीय विसयं विसोहीलद्धि विहीण वेयणीय वेगुम्विय संकमण संकिलेस पाहुड़ पुग्गल पुढ़वि पुवायु पोग्गलपिंडो पोग्गलविवाई फास बंधपयड़ी बहिरप्पा बायर बैइंदिय विहीन संठाण भण पुद्गल पृथ्वी पूर्वायु पुद्गलपिण्ड पुद्गलविपाकी स्पर्श बन्धप्रकृति बहिरात्मा बादर द्वीन्द्रिय कथ भावमोक्ष भोक्ता मिथ्यात्व मोक्षपथ राशि लोकाकाश लोकाकाश वर्गणा वर्तनलक्षण: वनस्पति व्रत संसारत्थ सत्तपयड़ी सत्ति सत्थ सद्दहण सप्पी भावमुक्ख भोत्ता वेदनीय वैक्रियिक संक्रमण संक्लेश संस्थान संसारस्थ सत्वप्रकृति शक्ति शस्त्र श्रद्धान सर्पि समनस्क सर्वगत सर्वघाति शाश्वत सामान्य सुतीक्ष्ण श्रुतज्ञानावरणीर सुखप्रतिबाधा सूक्ष्म समणा सव्वगअ सव्वघाइ मिच्छत्त मोक्खमह रासी लोगागास लोयायास चग्गणा वट्ठणलक्खो वणफदी सस्सद सामण्णा सुतिक्खण सुदणाणावरणीय सुहपड़िबोहा सुहुम वद विग्धं विध्न Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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