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जैन दर्शन में कर्म-सिद्धान्त-एक अध्ययन मतिज्ञानावरणीयके अट्ठाईस भेदों की तालिका
घ्राण
चक्षु
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४
स्पर्शन
श्रवण मन इन्द्रिय इन्द्रिय इन्द्रिय इन्द्रिय इन्द्रिय भेद. ५ ५ ५
५ ४ - २८ १. व्यंजनावग्रह व्यंजनावग्रह व्यंजनावग्रह x व्यंजनावग्रह २. अर्थावग्रह अर्यावग्रह अर्थावग्रह अर्थावग्रह अर्थावग्रह अर्थावग्रह ६ ३. ईहाईहाईहाईहाईहाईहा ६ ४. अवाय अवाय अवाय अवाय अवाय अवाय ६ ५. धारणा धारणा धारणा धारणा धारणा धारणा
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अवाय तथा धारणा छह-छह प्रकारके होते हैं । अर्थावग्रह, ईहा, अवाय और ध रणामें मनकी क्रियायें होती हैं, परन्तु व्यंजनावग्रहमें मनकी क्रिया नहीं होती।
श्रुतज्ञानावरण कर्मका ज्ञान श्रुतज्ञानके परिचयके बिना संभव नहीं है, इसी कारण पहले श्रुतज्ञानका सामान्य स्वरूप तथा भेद प्रभेदोंका संक्षिप्त परिचय इष्ट है। २. श्रुतज्ञानावरणीय
मतिज्ञानसे जाने हुए पदार्थके अवलम्बनसे तत्संबंधी अन्य पदाथों का ज्ञान कराने वाला, श्रुतज्ञान कहलाता है, उमा स्वामीने सूत्र में कहा है “श्रुतं मतिपूर्वद्वंयनेकद्वादशभेदम्”, जैसे एक घड़ेको इन्द्रिय और मनके द्वारा जान लेनेपर उसी जातिके भूत, भविष्यत और वर्तमानमें किसी भी देशमें स्थित अर्थात् विभिन्न देशकालवर्ती घटोंके संबंधमें जो विचार होता है, वही श्रुत ज्ञान है। सुखलालने श्रुतज्ञानके विषयमें कहा है कि किसी भी विषयका श्रुतज्ञान प्राप्त करने के लिए उसका मतिज्ञान पहले आवश्यक है । इसीलिए मतिज्ञान, श्रुतज्ञानका कारण तो है, परन्तु केवल बहिरंग कारण है, अन्तरंग कारण तो श्रुतज्ञानावरणका क्षयोपशम ही है। किसी विषयका मतिज्ञान हो जाने पर भी यदि क्षयोपशम न हो तो श्रुतज्ञान नहीं हो सकता । मतिज्ञान केवल वर्तमान कालमें प्रवृत्त होता है, 3. All, except the first stage of these five stages of the process, are the
activities of the mind. Virchand. R. Gandhi, The Karma philosophy P. 20. २. पंच संग्रह, प्राकत, गाथा ३. तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय १, सूत्र ९ ४. राजवार्तिक, पृ०४८ .
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