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वस्तु स्वभाव
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अस्तित्व रखती है, वही वस्तु परद्रव्य, परक्षेत्र, पर काल और परभाव के द्वारा अस्तित्व नहीं रखती। जैसे घड़ा पार्थिव रूप द्रव्यसे, घट प्रमाण क्षेत्र से, वर्तमान पर्याय रूप काल से और रक्तवर्णादि भाव से, अस्ति है, वही घड़ा अन्य जलादि द्रव्य से, अपने स्थान से अतिरिक्त क्षेत्र से, अतीत तथा अनागत काल से और श्वेतादि भावों से, नास्ति रूप है। आलाप पद्धतिमें इस भावको सूत्र रूप में निर्दिष्ट करते हुए कहा है - "स्वद्रव्यादिग्राहकेणास्तिभाव" "परद्रव्यादिग्राहकेण-नास्ति स्वभाव:"२ इसी प्रकार उत्पाद-व्ययको गौण करने वाली सत्ता नित्य है. और उत्पाद-व्यय को मुख्य रखने वाली सत्ता अनित्य है।' १३. अन्तिम इकाई
स्वचतुष्ट्यके द्वारा वस्तुके चार विशेषों का परिचय प्राप्त होता है - द्रव्यात्मक, क्षेत्रात्मक, कालात्मक और भावात्मक । गुण तथा पर्याय जिसके आश्रय को प्राप्त होकर अपनी सत्ता को धारण करते हैं, वह सामान्य रूपसे द्रव्य कहलाता है | शुद्धगुण पर्यायोंके आधारभूत शुद्धात्म द्रव्यको जीवका स्व द्रव्य कहते हैं उसके अविभागी अंशको विशेष द्रव्य कहते हैं । पुद्गलका अविभागी अंश होनेके कारण परमाणु विशेष द्रव्य है । विभिन्न दृष्ट पदार्थोकी अवसान अवस्था अथवा अन्तिम इकाईकोही परमाणु कहाजाता है। यह परमाणु ही पुद्गल द्रव्यकी द्रव्यात्मक इकाई है, जिसे पुद्गलका स्वद्रव्य कहा जाता है।
वस्तुकी आधारभूमि या निवास, क्षेत्र शब्दका वाच्य है , जैसे परमाणु पुद्गल द्रव्यकी द्रव्यात्मक इकाई है, उसी प्रकार एक परमाणु जितने स्थान को घेरता है उतना स्थान ही द्रव्य की क्षेत्रात्मक इकाई है, जिसे स्वक्षेत्र कहा जाता है।
काल, द्रव्यके उस परिवर्तनशील हेतुका नाम है जिसके कारण वस्तु नित्य पर्यायोंके रूप में गमन करती है। परिणमन में हेतु होने के कारण ही काल को वर्तना कहा जाता है -
१. पंचाध्यायी पूर्वार्ध, श्लोक, २६३ २. आलाप पद्धति, पृ० १०६ ३. आलाप पद्धति, पृ० १०७
शुद्धगुणपर्यायाधारभूत शुद्धात्म द्रव्यं द्रव्य भण्यते
कुन्दकुन्दाचार्य, प्रवचनसार, गाथा ११५ की टीका ५. खंधाणं अवसाणोणादव्बो कज्जपरमाणु, नियमसार,गाथा २५ ६. पंचाध्यायी, पूर्वार्ध, श्लोक १४८
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