Book Title: Jaganmohanlal Pandita Sadhuwad Granth
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Jaganmohanlal Shastri Sadhuwad Samiti Jabalpur
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डा० जयकुमार जैन मुजफ्फर नगर
श्री ज्ञानचन्द्र जैन
व्याख्याता, खुरई
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते, त्रीणि तत्र प्रवर्धन्ते
इस उक्ति के अनुरूप ही भारतवर्ष में पूज्य त्यागियों, विद्वानों व विवेकियों के साधुवाद की परम्परा रही है । पूज्य पण्डित जी के विषय में यह व्यतिक्रम अशोभन लगता था ।
महापुरुषों में त्याग, विद्वत्ता, विवेक, सत्यान्वेषण एवं सद्विचारकता के गुण पाये जाते हैं । पूज्य पण्डित जी में इन सभी गुणों का मणि-कांचन संयोग है । वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान्, कुशल प्रवचनकार एवं परिमार्जित मति के लेखक हैं । वे गहन विचारों को सहज अभिव्यक्ति देने में कुशल 1
मनसि वचसि काये, पुण्यपीयूषपूर्णाः त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः प्रीणयन्तः । परगुणपरमाणून् पर्वतीकृत्य नित्यं निजहृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः ॥
पं० सत्यन्धर कुमार सेठी
उज्जैन
पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
पूज्यानां च व्यतिक्रमः । दारिद्र्यं मरणं, भयम् ॥
पूज्य पण्डित जी महान् अनेकान्ती एवं जिनवाणी के मर्मज्ञ, उन्नायक एवं संवर्धक हैं। आपकी कथनी-करनी में एकरूपता दृष्टिगोचर होती है । आप मुनिभक्त हैं । आप आचार्य विद्यासागर जो की वाचनाओं में प्रमुख भाग लेते रहे हैं । आप जैनधर्म की ध्वजा सदैव फहराते रहें, यहो मेरो कामना है ।
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पूज्य पण्डित जी से सर्वप्रथम मेरा साक्षात्कार सागर की वाचना में हुआ । मैंने उनसे कुछ सैद्धान्तिक चर्चायें की। उनके उत्तरों से मुझे आभास हुआ कि उनके ज्ञान में गहनता है, अभिव्यक्ति की स्पष्टता है । वास्तव में पण्डित जी शान्त साधक हैं । वे सदैव ज्ञानाराधन में रत रहते हैं । वे माँ भारती के सच्चे सेवक हैं । वे निर्लोभ तथा वितृष्ण हैं ।
'अध्यात्म अमृतकलश' में उनके विचार पढ़ने से मुझे अत्यन्त शान्ति मिली है। उनके अनुसार, वस्तु-स्वरूप समझने के लिए व्यवहार और निश्चय नय के दो नेत्र हैं । जैन संस्कृति का हार्द इन नेत्रों के सदुपयोग में | पण्डित जी पुरापीढ़ी के विद्वान् हैं पर रूढ़िवादी नहीं हैं । वे सिद्धान्तवादी महापुरुष हैं । मेरा उन्हें शत बार नमन ।
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