Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथान =संयुक्तः। 'ओयंसी' ओजस्वी ओजः तपः प्रभृतिप्रभावसमुत्थं तद्वान् । 'तेयंसी' तेजस्वी-तेजः अन्तर्बहिर्देदीप्यमानत्वं, तेजोलेश्यादि वा तद्वान् । वच्चंसी वर्चस्वी-वर्चः लब्धिजन्यमभावः तदस्यास्तीतिवर्चस्वी। 'वयंसी' इति पक्षे वचस्वीतिच्छाया, तत्र वचो वचनम् आदेय वचनं सकलपाणिगणहितावहं निरवद्य च, तदस्यास्तीति वचस्वी । 'जसंसी' यशस्वी-यशः तपःसंयमाराधनख्यातिस्तद्वान । 'जियकोहे' 'जितक्रोधः उदयप्राप्तक्रोधविफलीकारकः । “जियमाए" जितमायः उपाधि रखना यह द्रव्य की अपेक्षा लाघव है तथा गौरवत्रय का त्याग करना यह भाव की अपेक्षा लाघव है । ये दोनों प्रकार का लाघव इनमें वर्तमान था इसलिये ये लाघवसंपन्न थे। (भोयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे नियमाए जियलोहे नियइंदिए जियनिद्दे जियपरिसहे) तपस्या
आदिके प्रभाव से इनके शरीर पर एक विशेष प्रकार का तेज था इसलिये ये ओजस्वी थे। भीतर में तथा बाहिर में इनमें एक तरह की चमक थी इसलिये ये तेजस्वी थे। अथवा ये तेजोलेश्या से विराजित थे इसलिये भी ये तेजस्वी थे । लब्धिजन्य प्रभाव से ये युक्त थे इसलिये वर्चस्वी थे। "वयंसी" इस प्रकार के पाठ में सकल प्राणियोंका जिनसे हित दोसके ऐसे निरवद्य वचन ये बोलते थे इसलिये आदेयवचनवाले होने से ये वर्चस्वी थे। तप और संयम की आराधना में एकाग्रचित्त होने के कारण इनका यश चारों ओर फैल रहा था-इसलिये ये यशस्वी थे । क्रोधकपाय के उदय को इन्होंने सर्वथा विफल बना दिया था इसलिये ये जितक्रोध थे। उद्य प्राप्त कपटकार्य के विजेता होने के करण ये जितઅને ગૌરવ-ત્રયને ત્યજવું, આ ભાવની દષ્ટિએ લાઘવ છે. આ બન્ને જાતની લઘુતા
भनामा विद्यमान ती, अरसा भाटे के साथ संपन्न (ता. (ओयंसी तेयंसी वच्चसी जसंसी नियकोहे जियमाणे जियलोहे जियमाए जियइदिए जियनिद्दे जिय परिसहे) त५ वगेरेना प्रभावथी अभना शरी२ ५२ से विशेष तन प्रभाव હતા, એથી જ એ ઓજસ્વી હતા. અંદર અને બહાર એમનામાં એક જાતની ચમક હતી, એથી જ એ તેજસ્વી હતા. અથવા તેઓ તેજલેશ્યાથી યુક્ત હતા, એટલા માટે પણ એ તેજસ્વી હતા. લબ્ધિજન્ય પ્રભાવથી એ યુક્ત હતા, એટલે જ એ વર્ચસ્વી
1. "वयंसी" मा ५४मा को समस्त प्राणियोनुनाथी हित संभवे भवा નિરવઘ વચન એ બેલતા હતા. એટલા માટે આદેય વચનવાળા હોવાથી એ વર્ચસ્વી હતા. તપ અને સંયમને આરાધવામાં તલ્લીન હોવાને લીધે એમની કીતિ મેર પ્રસરી રહી હતી, એટલા માટે જ એ યશસ્વી હતા. કોધ કષાયના ઉદયને એમણે સંપૂર્ણ રીતે નિષ્ફળ બનાવ્યું હતું. એથી જ એ છોધ હતા. ઉદ્દભવેલા કપટ
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