Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथासूत्रे हसितभणितविहितपिलाससुललितसंलापनिपुणयुक्तोपचारकुशला-प्रशस्तगमनहसनभणनकृतनेत्रचेष्टायुक्त सुललितसंभापणनिपुणा उचितलोकव्यवहारकुशलाच, प्रासादीया-चित्तप्रसादजनिका, दर्शनीया चक्षुरालादकारिणी, अभिरूपा-अभिमतसौन्दर्या, प्रतिरूपा असाधारणरूपलावण्यवती, सा श्रेणिकस्य राज्ञ: इष्टाअभिलपणीया मनोऽनुकूलव्यवहीत्वाद्वल्लभा 'जाव' यावत् 'यावच्छन्देन-'कंता पिया मणुन्ना मणामा नामधेजा वेसासिया सम्मया बहुमया अणुमया भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेलाइव सुसंगोविया चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहीया रयणकरंडगाविव सुसारविया माणं सीयं मा णं उन्हं मा णं दंसा माणं मसगा माणं वाला मा णं चोरा माणं वाइयपित्तिय सिंभियसन्निवाइय विविहरोगायंका फुसंतु' त्ति को, सेगिएणं रन्ना सद्धिं विउलाई भोगभोगाई झुंजमाणा' इति संग्रहः, 'विहरइ' इत्यग्रेणान्वयः।
तत्र-'कान्ता-मनोहरा, पिया-प्रीतिजनिका-अखण्डप्रेमविषयत्वात,मनोज्ञा मनोविनोदिनी, मनोऽमा मनोगता मनसि स्मरणीया मनोऽनुकूलेत्यर्थः, नामधेया प्रशम्तनामवती, वैश्वासिकी-विश्वासयोग्या, सम्मता-संमान्या तत्कृतकार्यस्य संमअधिक सौन्दर्यशाली बना रहता था सुन्दर गति से हँसी से बोलचाल से नेत्र चेष्टा युक्त सुललित संभाषण से, वह ऐसी पुनीत होती थी कि इसके समान लोक व्यवहार में और कोई विशेष पटु नहीं है। दशनीय थी। प्रतिरूप थी। राजा को वडी अधिक प्रिय थी। यहां पर भी जो यह दूसरा यावत् शब्द आया है वह इस पाठ का सूचक है---
कंता पिया मणुन्ना इत्यादि-इन शब्दों का अर्थ इस प्रकार है-मन को हरण करने वाली होने से राजा के वह कान्त थी, अखण्ड प्रेम की विपयभूत होने से राजाको वह प्रिय थी, राजा के मन को विनोद करने वाली होने से वह मनोज्ञ थी, राजा के मनके अनुकूल होने से वह मनो. गत थी, सुन्दर नामवाली होने से सुनाम धेया थी, विश्वास योग्य होने ચેષ્ટાઓ સાથે સરસ સભાષણથી તે એવી પુનીત હતી કે તેના જેવી લેકવહેવારમાં બીજી કોઈ પણ પટુ નહિ હતી. તે દર્શનીય હતી, અભિરૂપ હતી, પ્રતિરૂપ હતી.' અને રાજાને સૌથી વધુ પ્રિય હતી, અહીં પણ જે આ બીજો “યાવત્ શબ્દ આવ્યો छ, ते मा पाने सूयवे छ-'कंता पिया मणुन्ना इत्यादि'-- शहाना અર્થ આ પ્રમાણે છે–મનને આકર્ષક હોવાથી રાજાને તે કાન્ત હતી. અખંડ પ્રેમની તે વિષયભૂત હોવાથી રાજાને પ્રિય હતી, રાજાના મનને તે પ્રસન્ન કરનારી હેવાથી તે મજ્ઞ હતી. રાજાના મનને તે અનુકૂલ હોવાથી તે મનોગત હતી. સુંદર નામવાળી હેવાથી તે સુનામધેયા હતી. વિશ્વાસ મૂકવા ગ્ય હોવાથી તે વૈવાસિકી હતી.