Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 731
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ ३० जिनदत्त - सागरदत्तचरित्रम् ७१३ 'सिक्खावेह' शिक्षयत । ततस्तदनन्तरं खलु 'से' ते मयर पोपका जिनदत्तपुत्रस्य 'एयमहुँ' एतमर्थ प्रतिवन्ति, प्रतित्य च तं मऊरपोयय' तं गृह्णन्ति गृहीत्वा च 'जेणेत्र' यत्रैव 'सए गिहे' स्वकीयं गृह वर्तते 'तेव' तत्रैवोपागच्छन्ति उपागत्य च तं मयूरपोतकं पोषयन्ति पालयन्ति यावत् नृत्य च सिक्खावेंति' शिक्षयन्ति ॥ म्र. १४ ॥ माण पनि मूलम् — तरणं से मऊरपोयए उम्मुक्कबालभावे विन्नाय परिणयमेत्ते जोवणगमणुपत्ते लक्खणवंजणगुणोववेए माणुम्माणहूणकलावे विचित्तपिच्छे सतचंदए नील कंठए नच्चणसिीलए एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए अणेगाई नलगाई के कारवसयाणि य करेमाणे विहरइ । तएणं से मऊरपोसग्गा तं मऊरपोयगं उम्मुक्क जाव करेमाणं पास पासित्ता तं मऊर पोयगं गेविहंति गेव्हित्ता जिणदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए हतु तेसिं विउलं जीवियाहिं पीइदाणंजाव प'ड विसज्जेइ ॥सू. १५ ॥ पास, पासित्ता हतुड़े मउरपोसए सदावेs) जिनदत्तने मयूरपोतक को देखा तो देखकर वह बहुत अधिक हर्पित एवं तुष्ट हुआ - बादमे उसने मयूपोषकों को बुलाया (सदावित्ता एव वयासी) बुलाकर उनसे ऐसा कहातथा मार्जार आदिकृत उपद्रवों से बचाते हुए बढाओ और (नलगंच सिक्खावेह) नृत्य भी सिपलाओ। (तरण ते मऊरपोसगा निगदत्तपु तस्स एम पडणे ति) इस प्रकार उन मयूरपोपकों ने जिनदत्तपुत्र के इस कथन को स्वीकार कर लिया ( पडिणित्ता तं मऊरपोययं गेहतिगेहित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उपगच्छंति ) स्वीकार कर बाद में वे उस मयूर' - शिशुको ले चले-लेचल कर वे जहां अपना घर थावहां आगये । (उवागच्छित्ता त मऊरपोयग जाव नईल्लगं सिक्वावे ति) आकर उन्होंने उस मयूर शिशु को पालो यावत् उसे नृत्यकला भी सिखलाई न. १४ । ( नलगं च मिखावेह) भोटु थाय त्यरे नायता शिणवाडी (तएण ते मा पोसगा जिणदत्त युत्तस्स एयमहं पडिसृति) રીતે મેારના પાળાએ त्रिनदृत्तना पुत्रनु रमा उथन स्वीअयु (पड़िसुणित्ता त पोषय गेति गेव्हित्ता जेणेव सए गिहे तेणेत्र उवागच्छंति) स्वीअर्या माह तेथे ठेलना जय्याने साथै स गया. भने सहने न्या तेभनु घर तु त्या गया (उवाग च्छित्ता तं मऊरपोयगं हुलगं सिक्खावेति) त्यां न्हाने तेथे ते ઢનન બચાનુ પેડુ કર્યુ તેમજ માટુ થયુ ત્યારે તેને નાચતાં પણ શીખવાડયુ સ્ ૧૪

Loading...

Page Navigation
1 ... 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770