Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ ४. गुप्तेन्द्रियत्वे कच्छपगालदृष्टान्त,
अब सूत्रकार इस अध्ययन के अर्थका अवहार करते हुए कहते हैं कि
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'एवं खलु जंबू' ? इत्यादि ।
टीकार्थ -- (समणेण भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते) श्रमण भगवान् महावीरने इस चतुर्थ ज्ञाताध्ययन का ग्रह पूर्वोक्त रूपसे कच्छप के दृष्टान्त प्रदर्शन से पंचेन्द्रियों का दमन करना रूप अर्थ प्रतिबोधित किया है ( एवं खलु जंबू ? त्तिवेमि) ऐसा हे जंबू ? मै कहता हूँ | भगवान ने जैसा कहा है- वैना ही यह मैने तुमसे कहा है-- अपनी बुद्धि से कल्पित कर नहीं कहा हैं || १५ || श्री जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजी महाराजकृत ज्ञाताधर्मकथासूत्र " की अनगार धर्मामृतवर्षिणी व्याख्याका चतुर्थ अध्ययन समाप्त ॥ ४ ॥
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'एवं खलु जंबू ? इत्यादि ।
टीकार्थ--(समणेण भगवया महावीरेण चउत्थस्स नायज्झयणस्स अय मट्ठे पत्ते) श्रम लगवाने थोथा ज्ञाताध्ययनना पूर्वेति अर्थ अयमानु दृष्टांत આપીને સમજાવ્યે છે, પાંચો ઇન્દ્રિયાનું દમન કરવું એજ મુખ્ય ભાવ સૂચિત થાય છે. ( एवं खलु जंत्र ? त्तिवेमि) डेन्यू ! साम हुँ' तने उडु छु म भने ह्यु' छ तेभर મેં તને પણ કહ્યુ છે . પેતાની બુદ્ધિથી કલ્પના કરીને મેં તને એકે વાત કહી નથી. "સૂ. ૧પા શ્રી જૈનાચાય જૈનધર્માંદિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલ મહારાજ
કૃત
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સતાધર્મકથા સૂત્રની અનગાર ધર્મામૃતવર્ષિણી વ્યાખ્યાનું ચોથું અધ્યયન સમ્પૂર્ણ ॥ ૪ ॥