Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 745
________________ अनगारधर्मामृत गीटीका अ ४ गुप्ते द्रियत्वे कच्छ गालद्रष्टान्त. ७२७ मूलम् - तए णं ताओ मयंगतीरद्दहाओ अन्नया कयाई सूरियंसि चिरत्थमियंसि लुलियाए संझाए पविरलमाणुसंसि णिसंतपडिणिसंसि दुवे कुम्मगा आहारत्थी आहारं गवेसमाणा सनियं २ उत्तरंति । तस्मेव मयंगतीरदहस्त परिपेरंतेणं सव्वओ समंता परिघोलेमाणा २ वित्तिं कप्पेमाणा विहरति ॥ सू. ४ ॥ टीका ---' तर " इत्यादि । ततः खलु तस्माद् मृतगङ्गातीरहदाद् अन्यदा कदाचित् 'रियंसि' सूर्ये 'चिरत्यमिसि' चिरास्तमिते = चिरं बहु कालम् अस्तमिते अस्तंगते, अत एव - 'लुलियाए संझाए' लुलितायां चलितायाम् व्यतीतायां संध्यायां 'पविरलमाणुसंसि' प्रविरलमानुषे प्रविरला अल्पाः मानुषा नरा यत्र तस्मिन् अधिकजन संचाररहिते इत्यर्थः, निसंतपडिनिसंतसि' निशान्तप्रति निशान्ते निशान्तानि गृहाः प्रतिनिशान्तानि सर्वथा प्रशान्तानि शयनसमयागमने सति शब्दरहितानि - जनादिसंचाररहितानि यत्र तस्मिन् काले रथले वा आर्षत्वान्निष्ठान्तस्य परनिपातः । 'समासि' सति = विद्यमानेवर्तमाने सतीत्यर्थः, 'दुवे कुम्मगा' द्वौ कर्मकौ = कच्छपौ श्राहारार्थिनी आहारा 'तए णं ताओ मय गतीरदहाओ' इत्यादि । टीकार्थ - (ar) इसके बाद (अन्नया कयाई) किसी एक समय (ताओ मयंगती दहाओ ) उस मृत गंगातीर हूद से (सुरियसि चिरत्थमियंसि ) सूर्य अस्त हो जाने को बहुत समय हो जाने पर (लुलियाए संझाए ) तथा संध्याकाल व्यतीत हो जाने पर तथा शयन का समय आजाने से (सित पडिणिस तंसि ) प्रत्येक घर शब्द रहित हो जाने पर ( पविरलमाणुसंसि ) एवं स्थलों को मनुष्यों के संचार से रहित हो जाने पर अथवा उनको अत्यल्प मनुष्यों के संचार वाले होने पर दुवे कुम्मगा था 'तए गं ताओ मयंगती रहाओ' इत्यादि । टीअर्थ - (तए ण) त्यार पछी ( अन्नया कयाई) वने (ताओ मगती रहाओ ) भृत गंगातीर भाथी ( सूरियंसि चिरत्यमिय सि) सूर्यास्त पछी जडु वखते (लुलियाए सझाए ) तेभन સધ્યાકાળ માદ સુવાના वात थ गयो हुतो ( णिसंतपडिणिसंतंसि) અને દરેકે દરેક ઘરમાંથી માણુ सोनो घोघाट गंध था गयो ( पत्रिरलमाणुम सि ) भने आसपासनी या માણસાની અવરજવર એકદમ બંધ થઇ ગઇ અથવા તા એટી થઈ ગઈ (દુલે

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