Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 743
________________ अनपारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ४ गुप्त द्रियत्वे कच्छपश्रृगालद्रष्टान्त' सुंसुमाराणां-शिशुभाराणां जलजन्तुविशेषाणां च शतिकानां च साहसि काणां च शतसाहस्त्रिकाणां यूथानिवृन्दानि निर्भयानि निरूद्विग्नानि सुखसुखेन अभिरममाणानि २ विहरन्ति || स. २. ।। मूलम्-तस्स णं मयंगतीरदहस्स अदूरसासंते एत्थणं महं एगे मालुयाकच्छए होत्था, वन्नओ, तत्थणं दुवे पावसियालगा परिवसंति, पावा चंडा रोदा तल्लिन्छो साहसिया लेहियपाणी आमि सत्थी आमिसाहारा आमिसप्पिया आमिसलोला आसिसं गवेसमाणा रति वियालचारिणो दिया पच्छन्नं चावि चिट्ठति ॥सू. ३॥ टीका-'तस्सणं' इत्यादि तस्य खलु मृतगगातीरहूदरयादरसामन्ते अत्र खलु भहानेको मालुकाकक्षक असीत्, वर्णकः अस्य द्वितीयाध्ययने व्याख्यातः, तत्र खलु द्वौ 'पारसियालगा' पाप शृगालको पापपरायणी शृगालो सयसाहास्सियाण य जूहाई निमयाइ निऊबिग्गाई सुहसुहेग साहस्सियाण य अभिरममाणाई २ विहरंति) उसमें अनेक ग्राहों के अनेक मकरों के अनेक शिशुमारों के, अनेक शतसाहसिकों के यूथ के यथ निर्भय और निरुद्विग्न होकर आनन्द के साथ विचरते रहते थे। मू. । २ । 'तस्स णं मयंगतीरबहसाम इत्यादि ॥ टीकार्थ-(तस्स णं मयंगतीरदहम्स) उम मृत गंगातीर हूद के (प्रदू रसामंते) न अतिदुर और न अति समीप प्रदेश में (एत्य णं महं एगे मालु याकच्छए होत्था) एक बडा भारी मालुका कच्छ धा (वन्नो) इसका वर्णन द्वितीय अध्ययन में किया जा चुका है। (तत्थणं दुवे पाव. सयसाह रिसयाणय, जुहाइ निमयाई निरुचिमाईरह मुद्देण अधिरम्म णा२ विहरांति) तेभा घ! भासामाना, घ! अन्यमयाना, पशु आहाना, पशु મગરના, ઘણું શિશુ મોરોના ઘણા સેંકડે, ઘણા સાહસિકેના, ઘણું શતસાહશ્ચિકેના સમૂહ નિભક અને નિરુદ્વિગ્ન થઈને સુખેથી વિચરણ કરતા હતા. એ સુ ૨ 'तस्म ण मय गतीरदहस्स' इत्यादि ।। टी --(तस्स ण मयंगतीरदहस्स) ते भृत तीर हना(अदर सामत) घणे २ ५ नडि तेभा मत्यंत न नहि या प्रदेशमा (एत्थण महं एगे मालुयाकच्छए होत्था) : म वि मा ४४ डतो (वन्नओ) मा २७ वर्णन मी अध्ययनमा ७वामा साच्यु

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