Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 727
________________ ७०९ भनगारधर्यामृतवर्षिणीटीका अ ३ जिनदत्त-मागरदत्तचरित्रम् तपः संयमाराधनस्य फल भविष्यति न वा इत्येवं फलं प्रति शङ्कावान, भेद समापन्नः-अस्मादेव नैग्रन्थ्यप्रवचनादात्मकल्याण स्यात् किमुत-अन्यस्मादित्येव मते धीभावं प्राप्तः । कलुपसमापन्नः मतिमालिन्यमुग्गतः, चिरकालपरीषहोपसर्गमहनेन किं फलं स्यादिति कालुष्यपरिणामवान् । 'से णं' स साधु खलु 'इहभवे' अस्मिन्नेवभवे चैव निश्चयेन बहूनां श्रमणानां वीनां श्रमणीनां बहूनां श्रावकाणां बहीनां श्राविकाणां 'हीलणिज्जे' हीलनीय:गुरुकुलाधु द्वायतः पुनः निंदणिजे' निन्दनीयः-कुत्सनीयः स्यात् मनसा 'खिंसणिज्जे' खिंसनीयः जनमध्ये 'गरहणिजे' गर्हणीयः समक्षमेव च 'परि भवणिज्जे' परिभवनीयः अनभ्युत्थानादिभिः 'परलोए वि य णं' परलोकेऽपि च खलु इस तपसयम की आराधना का फल मुझे प्राप्त होगा या नहीं होगा इस प्रकार फल के प्रति शंका वाले होते हैं, भेद समापन्न होते है-- इमी नैन्थ्य प्रवचन से आत्म कल्याण होगा-या अन्य किसी और से आत्मकल्याण होगा इस प्रकार के विचार से युक्त रहते है, कलुष समापन्न होते हैं--चिरकालतक परीषह और उपसर्ग के सहन करने से क्या लाभ है इस प्रकार कालुष्य परिणाम वाले होते हैं (सेणं इह भवे चेव वढूगं समणाणं वहूर्ण समणीण बहूण सावगाणं वहूर्ण साविगाणं हीलणिज्जे निंदणिज्जे, खिंसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे) वे इस भव में ही अनेक श्रमणों के अनेक श्रमणियों के अनेक श्रावकों के और अनेक श्राविकाओं द्वारा हीलनीय होते हैं निंदनीय होते. हैं जन मध्यमें खिसणीय होते है-समक्ष में गर्हणीय होते हैं तथा अनभ्युत्थान आदिसे परिभवनीय होते हैं । (परलोए वि य णं आगच्छइ वहूर्ण दडणागिय અને સંયમને આરાધવાનું ફળ મને મળશે કે નહિ આ રીતે ફળ પ્રત્યે શંકાશીલ હોય છે, ભેદ સમાપન્ન હોય છે–– આ નૈ થ પ્રવચનથી આત્મકલ્યાણ થશે કે બીજા કેઈથી આત્મકલ્યાણ થશે આ પ્રકારના વિચાર કરવા માંડે છે, કલુષ સમાપન હેાય છે લાંબા વખત સુધી પરીષહ અને ઉપસર્ગોને સહન કરવાથી શું લાભ ? २मा प्रमाणे आयुष्य परिणामका साय छ (से ण इहभवे चेव बहूण समणाणं वहूण समणीण बहूण सावगाण बहूण साविगागहीलणिज्जे,निंदणिज्जे खिस. णिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे) ते २सभा घ श्रम। घी श्रमी વડે હીલનીય હોય છે, નિંદનીય હોય છે. સમાજમાં ખિ સણીય હોય છે, બધાની सामे आय डाय छ तभन्न मनत्युत्थान वगेरेथी परिसवनीय डाय छ. (परलोए वि य ण आगच्छइ, बहूण दंडणाणिय जाव अणुपरियटइ) परमपमा पy ते

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