Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 717
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ ३. जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् टाका-'तएणं ते' ततस्तदनन्तरं-मयूर्या उड्यनान्तर ती सार्थवाहदारको अन्योऽन्य परम्परं शब्दयता आवयतः संमुखी कुरुतः 'सहावित्ता' शदयित्वा अन्योन्यमाहृय वक्ष्यमाणप्रकारेणावादिष्टाम् 'जहाण' यथा खलु देवानुप्रिय ! एषा बनमयूरी आवामेजमानौ आगच्छन्तौ दष्ट्वा च भीता, वस्ता, त्रसिता, उद्विग्ना पलायिता-स्वस्थानं त्यक्त्वाऽन्यत्स्थान गता महता शब्देन केकारचं मुम्चन्ती मती यावदावां मालुकाकक्षकं च पुनः पुनः प्रेक्षमाणी तिष्ठति 'तं' तत्-तस्मात् 'भवियव्वं' भवितव्यम् ‘एत्थ' अत्र केनापि कार 'तएणं ते सत्यवाहदारगा' इत्यादि । टीकार्थ--(तएणं) इसके बाद (ते सन्यवाददारगा) उन दानों सार्थवाह दामोंने (अन्नमण्यं सदावें ति) परम्पर में विचार किया बातचीत की (सदावित्ता) बातचीत कर के (एवं वयासी) फिर वे इस प्रकार कहने लगे-- (जहाणं देवाणुप्पिया! एसा वणमऊरी अम्हे एजमाणा पासित्ता भीया तत्था तसिया उधिग्गा पलाया महया २ सद्देणं जाव अम्हे मालयाक च्छयं च पेच्छमाणी २ चिट्ठइ) जिस कारण हे देवानुप्रिय ! यह वनमयूरी हम लोगों को आता हुआ-देखकर भयभीत, त्रस्त और त्रासित होकर उद्विग्न बनी और यहां से उड़ गई-उडती २ उसने बडे जोर २ से केकारव किया--और इस मालुकाकच्छक से बाहर होकर एक वृक्ष की डाल पर बैठी २ यह हम लोगों की ओर और मालकाकच्छ का और चार २ देख रही है (तं भवियव्वं एस्थ कारणेणं तिकटु मालुयाकच्छयं अंतो अणुपविसंति) तो इसमें कोई न कोई कारण अवश्य होना चाहिये-ऐसा 'तएणं ते मत्थवाह दारगा' इत्यादि । टीज-(तएणं) त्या२मा (ते सत्यवाह दारगा) मने सार्थवाड पुत्रोसे (अन्नमण्णं साति) मे भी साथे वातो ४३ (सहावित्ता) पातचीत ४ीने (एवं वयासी) तसावा साया (जहाणं देवाणुप्पिया ! एसा वणमऊरी अम्हे एजमाणा पासित्ता भीया तत्था तसिया उधिग्गा पलाया मया २ सदेणं जाव अम्हे मालुयाकच्छय च पेच्छमाणी२ चिट्ठ) वानुप्रिय 1 मा देस मापने આવતા જોઈને ભયભીત સંત્રસ્ત, ત્રાસિત, અને વ્યાકુળ થઈને અહીંથી ઉડી, અને જ્યારે તે ઉડી ત્યારે તેણે મોટા અવાજે કેકારવ કર્યો અને તે માલુકાકચ્છની બહાર નીકળીને એક ઝાડની શાખા ઉપર બેસી ગઈ છે અને ત્યાંથી પણ તે આપણને અને भा४२७ने वारवार ने २डी छ. (तं भवियन्वं एत्य कारणेणं तिकट्ट मालुया कच्छयं अतो अणुविसति) तो मेनी पाछ धने ४६ २७न्य यासा

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