Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 722
________________ ७०४ शाताधर्म कथामने भविस्सइ उदाहु णो भविस्सइ त्तिकटु त मऊरी अंडयं अभिक्खणं अभिकरवणं उव्वत्तेइ परियन्तेइ आसारेइ आसारेइ संसारइ चालेइ फदेइ घट्टेइ खोभेइ अभिक्खणं अभिक्खणं कन्नमूलंसि टिट्टियावेइ तएणं से मऊरी अंडए अभिक्खणं आभिक्खणं उव्वतिजमाणे जाव टिट्टिया वेजमाणे पोच्चडे जाए यावि होत्था, तएणं से सागरदत्तपुत्त सत्थवाहदारए अन्नया कयाइं जेणेव से मऊरी अंडए तेणेव उवागच्छइ उवोच्छित्ता तं मऊरी अंडयं पोचडमेव पासइ पासित्ता अहोणं ममं एसकिलावणए मऊरीपोयए ण जाऐ तिकटु ओहयमण जाव झियायइ। एवामेव समाउओ। जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरियं उवज्झयाणं अंतिए पव्वइए समाणे पंच महत्वएसु छज्जी विनि काएसु निग्गंथे पावयणे संकिते जाव कलुससमावन्ने से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहणं ममणीणं वहूर्ण सावगाणं वहूर्ण सावि गाणं होलणिज्जे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिजे परिभवणिज्जे परलोएवि य णं आगच्छइ बहूणं दंडणाणिय जाव अणुपरियट्टइ ।सू. १४॥ टीका--तत्थणं' इत्यादि-'तत्थणं' तत्र तयोद्धंयोर्मध्ये 'जे से' योऽसौसागरवत्तपुत्रः सार्यवाहदारकः 'मे णं' मः खलु 'कल्ल कल्ये-प्रातः समये 'तत्थ णं जे मे सागरदतपुरो' इत्यादि । टीकार्थ--(तत्थ) इनमें (जे से सागरदत्तपुत्ते सत्यवाहदारण) जो सार्थचाह दारक सागर दत्तपुत्र था (से णं कल्ल जाव जलंते जेणेव से चणमऊरी अंडए नेणेव उवागन्छ) वह प्रातः समय यावत् सूर्य के प्रका 'तन्थणं जे से मागरदत्तपुत्ते' इत्यादि । Hal-(तत्य) तेगामा (जे से मागरदत्तपुत्ते सत्यवाहदारए) ) मार्थपाई सापत्तने पुत्र तो ते (से णं कल्लं जाव जल ते जेणेत्र से वणमऊरी अंडरा नेणेव उवागन्छइ) सवारे न्यारे सूर्य य पाभ्ये त्याने त्या वनवनी

Loading...

Page Navigation
1 ... 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770