Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 720
________________ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे मूलम् -- तरणं ते सत्थवाह दारगा देवदत्ताए गणियाए सद्धि सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरिं पञ्चणुभवमाणा विहरिता तमेव जाणं दुरूढा समाणा जेणेत्र चंपा नयरीए जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता देवदत्ताए हिं अणुपविसंति अणुपविसित्ता देवदत्ताए गणियाए विउलं जीवि रिहं पीइदाणं दलयंति दलयित्ता सक्कारेंति सक्कारिता सम्माणेति सम्माणित्ता देवदत्ताए गिहाओ पडिनिक्वमंति पडिनिक्खमित्ता जेणेव सयाई २ गिहाई तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था || सु. १३ ॥ टोका- नएणं ने' ततस्तदनन्तरं तौ सार्थवाहदारकौ देवदत्तया गणि कया सार्द्धं सुभूमिभागस्योद्यानस्योद्यानश्रियं प्रत्यनुमती विहृस्य तदेव यानं प्रमादौ सौ यत्रत्र चंपानगर्यां देवदत्ताया गणिकायाः गृह वर्तते तत्रोपागच्छतः उगत्य देवदत्ताया गृहमनुपविशतः - प्रवेशं कुरुतः देवदत्तायै ७०२ 'तपणं ते सत्यवाहदारगा' इत्यादि । टीकार्थ - (तएण ) इसके बाद (ते सत्यवाहदारगा) वे सार्थवाह दारक (देवदत्ता गणियtए) देवदत्ता गणिकाके (सद्धि) साथ (सुभूमिमाग) सुभूमिभाग उद्यान की (उज्जाणसिरिं) उद्यानश्रीका ( पचणु मत्राण ) अनुभव करते हुए (विहरिना) धूम कर ( तमेव जाणं दूरूदा समाणा) उमी रथ पर चढे हुए ( जेणेत्र चपानयरी जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिद्दे तेणेत्र उवागच्छति) जहां चंपानगरी में देवदत्ता गणिका का घर था वहां आये 'तएण ने सत्यवाहदारगा' इत्यादि ! टीअर्थ - (तणं) त्या पछी (ले सत्थवाहदारगा) सार्थवाह पुत्रौ (देव दत्तोए गणियाण) देवदत्ता गलिनी (सद्धि) साथै (सुभूमिभागस्स उज्जाणरस) सुलूभिलाग उद्याननी (उज्जाणसिरिं) शोलाने ( पच्चणुभनमाणा) अनुभवता (विहरिना) वियर श्ता ( तमेव जाणं दुडा समाणा) ते रथ पर सवार थर्धने (जेणेत्र चंपानगरीए जेणेव देवदत्ताए गणियाण गिहे तेणेव उवागच्छति। यथान शरीमां त्यां हेवहत्ता गधिअनु घर हुतु त्यां याव्या. ( उवागच्छित्ता देवदत्ताए

Loading...

Page Navigation
1 ... 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770