Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 718
________________ 200 ____- ज्ञाताधर्म कथाङ्गसूत्र णेन 'तिकडे' इति कृत्वा इति परस्परं विचार्य मालुकाकक्षकमन्नो मध्येऽनुम विशन:-प्रवेशं कुरुतः अंतः अनुप्रविश्य तत्र तस्मिन् स्थाने खलु वनमयूयों द्व 'पुढे' पुष्टे पर्यायागते प्रसवकालजनिते योवद्भिन्नमुष्टिपमाणे अण्ड के दृष्ट्वा अन्योऽन्यं शब्दयतः वातीकुरुतः शब्दायित्वा एवमवादिष्टा 'सेय' श्रेयः अस्य प्रक्षेपयितुमित्यत्र मन्बन्धः, खलु हे देवानुप्रिय ! आवयोरिमे वन मयूराण्ड के गृडीत्वा 'साणं. साणं' स्वासां स्वासांम्बकीयानाम् २ 'जाइमंताणं' जातिमतीनां विशिष्ट जातिमता कुक्कुटिकानामण्डकेषु प्रक्षेपयितुम्-स्थापयितुम् , ततस्तदनन्तरं खलु 'ताओ' ता-आवयो तिमन्यः कुकुटिकाः 'एए' एते अस्मत्समानी ते अण्डकेमयूर्या अण्डके पुनः 'सए य अंडए' स्वकानि चाण्डकानि संरक्षन्त्यः सम्यक पोपणादिना 'संगोवेमाणीओ' संगोपायमाना-परकृतोपद्रवतः प्रतिपाल यन्त्यः विहरिष्यन्ति । ततस्तदनन्तर खलु आवयोः 'एत्थं' अत्र अस्मिन् विचार कर वे दोनों उस मालकाकच्छक के भीतर प्रविष्ट हो गये (अणुपविमिना तत्थणं दोपुढे परियागये जाव पासित्ता अन्नमन्नं सदावेति) मविष्ट होकर वहां उन्होंने पुष्ट एकही साथ क्रमशः उत्पन्न हुए भिन्न मुष्टि प्रमाण दो अंडे को देग्वा देखकर फिर वे परस्पर में एक मरे से कहने लगे। कहकर फिर इस प्रकार उन्होंने विचार किया कि (सेयं खलु देवाणुपिया ! अम्हं इमे वणमकी अडए साणं २ जाइमं नाणं कुक्कुडियाणं अंडएम य पविखवावेनए) हे देवानप्रिय! हम दोनों के लिये यह बड़ी अच्छी बात है कि हम दोनों इन दोनों अंडो को अपनी २ जातिमती कुक्कुटिकाओं के अंडो में रख देवे (तएणं ताओ जाइमंताओ कुक्कुडियाओ एए अंडए सएय अंडए सएणं पखवाएणं सारक्खमाणीअो संगोवेमाणीओ विहरिसंति) इस तरह वे विशिष्ट जाति नये आम पियारीने तमा मन भायु ४२७ प्रविष्ट थया (अणुपविमित्ता तत्थ णं दो पुढे परियागये जाव पासित्ता अन्नमन्नं सदावें ति) प्रवेशान તેઓએ એકી સાથે અનુક્રમે ઉત્પન્ન થયેલા મૂઠીના જેટલા પ્રમાણવાળા બે ઈંડા જોયા તે જોઈને તેઓ એક બીજાને કહેવા લાગ્યા, અને આ પ્રમાણે વિચાર કરવા લાગ્યા કે (सेय, खल, देवाणुप्पिया! अम्हं इमे वणमऊरी अडए साणं २ जाइमंताणं कुक्कुडियाणं अंडएस्तु य पवित्रावताए) है वानुप्रिय माप मने भाटे ये સારું છે કે આપણે બંને એ બને ઈડાઓને પોતપોતાની મરઘીઓના ઈડાઓમાં મૂકી દઈએ (नएणं ताओ जाइमंताओ कुक्कुडियाओ एए अंडए सएय अंडए सएणं पक्खवाएणं सारखमागीओ संगोवेमाणीओ विहरिम्सलि) मा शतते तुही नही જાતિની આપણી મરઘીઓ આપણા વડે લઈ જવાએલા હેલના ઈંડા અને પિતાનાં ઈડાનું

Loading...

Page Navigation
1 ... 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770