Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्म कथाङ्गमत्रे जातिसम्पन्ना इहागता, इहसम्पाप्ताः, तद् इच्छामि खलु स्थविगन भगवंतो वन्दे नमस्यामि । स्नातः यावत् शुद्र प्रवेश्यानि माङ्गल्यानि वस्त्राणि 'पवरपरिदिए' प्रवरपरिहिता-प्रवरं यथास्यात्तथा मुष्ठुतयेत्यर्थः परिहितः धृतः परिहितप्रवरवस्त्रः सन् 'पायविहारचारेणं' पादविहारचारेण-पादाभ्यां सञ्चरणेन यत्रैव गुणशिलक चैत्यं यत्र स्थविरा भगवन्तस्तत्रैवोपागच्छति, उवागत्य वन्दते नमस्यति । ततः खलु स्थविरा भगवन्तो धन्यस्य सार्थवा हस्य विचित्र धर्ममाख्याति । ततः खलु स धन्य: मार्थवाहो धर्म श्रुत्वा एवमवाढीत-श्रद्दधामि ग्त्रलु भदन्त । निग्रेन्धं प्रवचनं यावत् प्रवजितः यावद् कर-इस प्रकार को यह थाध्यात्मिक यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ। (एवं खलु थेरा-भगवंतो जाइसंपन्ना इहमागया इहसंपने, तं इच्छामि णं थेरेभगवंते बंदामि नमसामि) स्थविर भगवंत जो जाति संपन्न है यहां आये हुए हैं-यहाँ सम्प्राप्त हुए हैं। अतः मैं चाहता हूँ कि मैं उन्हें बंदू-नमन करूँ । एसा विचार कर उसने (हाए, जाच मुद्धप्पवेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए) स्नान किया-यावत् शुद्ध प्रवेश करने योग्य, मंगल रूप वस्त्रों को पहिना (पाय विहारचारेणं जेणेव गुणसिले चेहए जेणेव थेरा भगवंतो. तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वदइ नमसइ) पटिन कर फिर वह पैदल ही जहां गुणशिलक चैत्य और स्थविर धर्मघोप भगवंत विराजमान थे वहां गया। जाकर उमने उन्हें वंदन किया नमस्कार किया। (तएण थेग भगवंतो धण्णस्स सत्यवाहस्स विचित्तं धम्मामाइक्खंति) इसके बाद उन स्थविर भगवंतने धन्य सार्थवाहको विचित्र धर्म का उपदेश दिया। (तएणं से धण्णे सत्यवाहे भनभा सा , जतना आध्याभि भने भनात ४५ हलव्या-(एवं खलु थेरा भगवतो जाइसंपन्ना इहमागया इहस पत्ते तं इच्छामि णं थेरे भगवंते वदामि नमसामि) माती संपन्न स्थविर भगवत म पधारेछ. સંપ્રાથ થયા છે એથી મને ઈચ્છા થાય છે કે હું તેમને વધુ અને નમન કરું मा प्रभारी विया२ अशन तभणे (हाए, जाव, मुद्धप्प वेसाहं मंगललाई वत्थाई पवरपरिहिए) स्नान यु भगवान पासे व योग्य शुद्ध वसो पडा. (पायविहारवारेण जेणेव गुणसिले चेहए जेणेव थेरा भगव तो तेणेव उवागच्छड उवागच्छित्ता बंदइ नम सह) पशन तमा पाथी यादीत त्यां शुशिक्ष સત્ય અને સ્થવિર ધર્મઘોષ ભગવત વિરાજમાન હતા ત્યા ગયા પહોંચીને તેઓએ भगवान बहन मने नमः॥२ च्या (तएण थेरा भगवंतो धण्णस्स सत्यवाहम्म विचितं धम्ममाइकावति) त्या२ पछी ते स्थविर लगते धन्य सार्थवाहन महसुन शत -शना माथी (तएण से घण्णे सत्यवाहे धम्मं सोचा