Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 705
________________ ६८७ अनंत गोटीका अ. ३ जिनदत्त - सागरदत्तचरित्रम् संलग्न - वृषभाकक्षेकरज्जुद्रयमित्यर्थः ताभ्याम् उपगृहीतौ शकटवाहक पुरुषेण स्ववशीकृतौ रजतमयघण्टौ च तौ मूत्ररज्जुप्रवरकाञ्चनखचितनस्त vastu star इतिकर्मधारयः ताभ्याम् 'नीलुप्पलकया मेल एहिं' नीलोत्पलकृतापीडाभ्याम् त - नीलोत्पलैः = नीलकमलैः कृतः आपीड: = शिरोभूषणं यो स्तौ ताभ्याम् 'पवरगोणजुत्राण एहिं' प्रवरगोयुवभ्याम्-तरुणोत्तमबलीवर्दाभ्याम् 'जुत्तमेव' युक्तं - सर्वथा संयुक्तमेव 'नानामणिरयणकंचण घंटियाजालपरिविवत्तं' नानामणिरत्नकाव्यनधष्टिका जालपरिक्षिप्त - अनेकमणिरत्नखचित सुवर्णमयघण्टिकासमूहेन युक्तम्. 'पत्ररलक्खणोत्रवेयं' प्रवरलक्षणोपपेत- शुभलक्षणयुक्त 'पवहणं' प्रवहण' — शकटम् सेजगाडीति भाषायाम् 'उवणेह' उपनयत - समानयत । ते कौटुम्बिकपुरुषा अपि नथैवोपनयन्ति ॥ . ७ ॥ हो । कपास के तन्तुओं से निर्मित रस्सी कि जो प्रवर कांचन से खचित हो जिनके दोनों नयनों में पड़ी हुई हो और इसी के बल पर जो शट वाहक पुरुषों द्वारा वशीभूत किये गये हों (निलोप्पलकयामेल एहि ) तथा नीलकमलों का बना हुआ शिरोभूषण जिनके मस्तक पर लगाहो (नाणामनिरयण कॅचण घंटिया जालपरिक्खित्त) जो एवं नानामणियों से तथा रत्नों से खचित ऐसे सुवर्णमय घंटिका समूह से युक्त हों तथा जो (पवरलक्खगोत्रवेयं) शुभलक्षणों से संपन्न हों (ते वि तदेव उवणें ति) इस प्रकार उन दोनों सार्थवाह पुत्रों का आदेश सुनकर उन कौटुम्बिक पुरुषोंने जैसा उन्होंने प्रवहण लाने को कहा था वैसा ही लाकर उपस्थित कर दिया । और उनकी ॥ मूत्र ७|| - ઘ'ટડીએ જેમના ગળામાં ખાંધવામાં આવી છે એવા, તેમજ સૂતરની પ્રવર કાચનથી પરિવેષ્ટિત દોરીની નાથ જેમના અને નાકનાં છિદ્રોમાં નાથેલી હોય અને એવી નાથોને લીધે જ તે ખળા ગાડીને હાંકનારાએ વડે વશમાં રખાતા હાય. (नीलोप्पलकयामेलए हिं) તેમજ નીલકમળાવાળું શિરાભૂષણ જેમના મસ્તકે શાભતુ હાય (नाणामणिरयणक चणघंटिया जालपरिक्खित्त ) ले भागे रानेषु भलि भने रत्नो डेसी सोनानी धुधरीयो चडेरेसी होय तेमन ? (पवरलक्खणोत्रवेय) शुभ सक्षलवाणा होवा हो. (ते वि तंत्र उचणेति ) मा ते મને સા॰વાહ-પુત્રોની આજ્ઞા સાભળીને કૉંટુબિક પુરુષો આજ્ઞા પ્રમાણે જ ચેય પ્રવહણ લઈ આવ્યા! સૂત્ર છ

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