Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मोताधर्मकथाद्गमन्त्र स्वच्छौ, अत एव परमशुचिभृतौ सुखासन प्राप्योपविष्टौ इत्यर्थः । 'समाणा'
सन्तौ देवदत्तया गणिकया साद्ध विपुलान्-वीस्तीर्णान मानुष्यकान्-मनुष्यसंबंविनः कामभोगान् शब्दादीन पञ्चेन्द्रियविषयान् भुञ्जानौ विहरत आसातेस्मासू ९'
मूलम्-तएणं ते सत्थवाहदारगा पुव्वावरणहकालसमयसि देवदत्ताए गणियाए सद्धि थणामंडवाओ पडिनिक्खमंति पडिनिक्वमित्ता हत्थ संगेल्टीए सुभमिभागे उज्जाणे वहुसु आलिघरएसु य कयलीघरेसु य लयाघरएसु य अच्छणघरएसु य पेच्छणघरएसु य पसाहणघरएसुय मोहणघरएसु य सालघरगसुय जालघरएसु य कुसुमघरएसु य उजाणसिरि पञ्चणुभवमाणा विहरंति नू. १०॥
टीका-ततस्तदनन्तरं खलु तौ सार्थवाहदारको पूर्वापराह्नकालसमयेपश्चिमे पहरे देवदत्तया गणिकया साई स्थणामण्डपात् प्रतिनिष्क्रामतः वहि'भोजन करने के बाद उन्होंने आचमन-शुद्ध जल से कुल्ला किया। खाते समय जो अन्नादि के सीत उनके पैर आदि अवयवों पर गिर गये थे उन्हें उन्होंने दूर कर उन अवयवों को साफ किया। इस तरह परमशुचि भूत होकर सूखासन पर आकर बैठे गये बैठने के बाद उन्होंने उस देवदत्ता गणिका के साथ विपुल मनुष्यभव संबन्धी कामभोगों को शब्दादिक पांचो इन्द्रियों के विपयों को सेवन किया। सूत्र ९॥
'तएणं ते सत्यवाहदारगा' इत्यादि । ____टीकार्थ--(तएण) इसके बाद (ते सत्थवादारगा) वे सार्थवाह दारक (पुवावरण्ड-काल समयसि) पश्चिम प्रहर में (देवदत्ताए गणियोए सद्धिं) देवदत्ता જમ્યા પછી તેઓએ શુદ્ધ પાણીથી કોગળા કર્યા. જમતી વખતે અન્ન વગેરેના કણે તેમના હાથ પગ ઉપર પડી ગયા હતા તેમને તેઓએ સાફ કર્યા. અને આ પ્રમાણે પિતાના અવયને સ્વચ્છ બનાવ્યા શુદ્ધ થયા બાદ તેઓ સરસ સુખદ આસન પર આવીને બેઠા બેસીને તેઓએ ગણિકા દેવદત્તાની સાથે પુષ્કળ મનુષ્યભવના કામો તેમજ શબ્દ વગેરે પાચે ઈન્દ્રિયોના વિષયોનું સેવન કર્યું સૂત્ર. ૯
'त एण ते सत्यवाहदारगा' इत्यादि !
टीज-(तगण) त्या२६ (ते सत्यवाहदारगा) सार्थ वाडना युत्रो (पुवावरहकालसमयंसि) पाval पडा२ना मते (देवदगाए गणियाए सद्धिं) हेवहत्ताशुशानी साथे (थूणामंडवानी पडिनिक्खमति) २१ए। मपनी पा२ नन्या.