Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 710
________________ शाताधर्म कथाम नगर्या मध्य-मध्येन-मध्ये भूत्वा यत्रैव सुभूमिभागमुद्यानमस्ति यौव नन्दा नाम्नी पुष्करिणी लवोपागच्छतः, उपागत्य प्रवहणात् रथात् प्रत्यवरोहतः-प्रत्यवतरतः वेश्यापि यानादुत्तीर्णा, ततःपश्चात्, नंदा पुष्करिणीमवगाहंते, अवगाय-प्रवेश कृत्वा देवदत्तया सार्द्ध जलमज्जनं-स्नानं कुरुतः स्नानं कृत्वा जलक्रीडां कुमतः कृत्वा स्नात्वा (स्नातो) देवदत्तया गणिकया सादमुभौ प्रत्युत्तरतः नंदापुष्क रणीतो बहिनिस्सरतः प्रत्युत्तीये यौव स्थणामण्डपो वस्त्राच्छादितमंडपस्तत्रैवोपागच्छतः, उपागत्य स्थूणामण्डपमनुप्रविशतः, मण्डपमध्ये देवदत्तया सर्द्ध तौ सार्थवाहदारको प्रवेशं कुरुत इत्यर्थः। अनुपविश्य सर्वालंकारविभूषितौ वस्त्रा. उस रथ पर आरूढ हुए (दुरुहिता चंपाए नयरोए) आरूढ होकर चंपा. नगरी के (मज्झ मज्झेणं) ठीक बीचोबीच से होकर (जेणेव सुभूमिभागे उजाणे) जहां सुभूमि भाग नाम का उद्यान और उसमें भी (जेणेव नंदा. पुग्वरिणी) जहा नदा नाम को पुष्करिणी (वावडी) थी (तेणेव उवागच्छंति) वहां पहुँचे। (उवागच्छित्ता पवहणातो पच्चोरुहंति) पहुँच कर फिर वे रथ से नीचे उतरे। (पच्चोहत्ता नंदापोक्खरिणीं ओगाहिति) उतर कर नंदा पुष्करिणी में प्रवेश किया (ओगाहित्ता जलमजणं करेंति) प्रवेश कर वहां उन्होंने स्नान किया (करित्ता जलकीड करेंति) स्नान करके जलक्रीडा की (करित्ता हाया देवदत्ताए सद्धि पच्चुत्तरंति) जलक्रीडा करके वे दोनों देव दत्ता गणिका के साथ उस पुष्करिणी से बाहर निकले (पच्चुत्तरित्ता जेणेव थूणामंडवे तेणेव उवागच्छंति) वाहिर निकल कर जहां वह स्थूणामंडपवस्त्राच्छादितमंडप-था-वहाँ आये-(उवागच्छित्ता थुणामंडवं अणुपविसंति) सवार थया. (दुरुहित्ता चपाए नयरीए) सपा२ -४ने पानगरीनी (मज्म मज्झेणं) ४ थे ने (जेणेव सुभूमिभागे उजाणे) त्या सुसूभिमा धान तमन (जेणेव नंदा पुक्खरिणी) ज्यांना नाभे शिशी) (म मा डाय तवी २७ पानी नानी सु४२ वाव) हुती (तेणेव उवागच्छति) त्या पाडांग्या (उवागच्छिचा पवहणातो पच्चोरुहंति) पडाचीन तेमा २थमाथी नीयता (पञ्चोमाहिता नंदा पोखरिणी ओगाहिति) ताशने न रिक्षा (वाव) भा है। भने (ओगाहित्ता जलमज्झणं करेंति) प्रवेशीन तमामे स्नान यु (करित्ता जलकीड करेंति) नान ४शन तमामे are -यो ४१. (करित्ता हाया देवदत्ताए सद्धि पच्चुत्तरंति) स |31 जीन तमा मने वहत्ता कानी साथै रिशीभांथी गडा२ नाण्या. (पच्चुत्तरित्ता जेणेव थूणा मंडवे तेणेच उवागच्छति બહાર નીકળીને ત્યા સ્થણે મંડપ (વસ્ત્રથી આછાદિત મંડ૫) અર્થાત્ તબૂ હતા ત્યાં ગયા (उचागच्छिताथूणामंडवं अणुपविसंति) त्यां न तेमा भपमा अविष्ट थया.

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