Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 707
________________ अनगारधर्मामृतवणीटीका अ. ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् ६८ देवदत्ताय प्रणिकाया गृह वर्तते तत्रोपागच्छतः, उपागत्य प्रवहणान् प्रत्यचरोहतः प्रत्यवरुह्य देवदत्तायां गणिकाया गृहमनुप्रविशतः ततस्तदनन्तरं खलु सा देवदत्ता गणिका तौ सार्थवाहदारकौ एजमानौ - आगच्छन्तौ पश्यति, दृष्ट्वा हृष्टतुष्टा=अतिशयेन प्रमुदिता, अद्य मम भाग्योदयो जातो यत एताविभ्यपुत्रौ मम गृहे आगताविति विचार्य स्वासनादभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थाय सप्ताऽष्टपदान्यनुगच्छति=अभिगच्छति अनुगम्य, तयोः संमुखं गत्वा तौ सार्थवाहदारकौ प्रत्येवं वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत् 'संदिसंतु ण' सन्दिशन्तु आदेशं है (पवहणं दुरूति) उस प्रवहण पर सवार हुए। (दुरूहित्ता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहं तेणेव उवागच्छंति) सवार होकर जहां देवदनाका घर था वहां पहुँचे । (उवागच्छित्ता प्रवहणाओ पच्चोरुहंति) पहुँच कर वे उसे प्रवहण से नीचे उतरे। ( पच्चारुहित्ता देवदत्ताए गणियाए गिहं अणुपत्रिसंति) नीचे उतरकर देवदत्ता गणिका के घर में प्रवेश किया (तरणं सा देवदत्ता गणिया सत्थवाहदारए एजमाणे पासह) देवदत्ता गणिकाने उन दोनों सार्थवाह पुत्रोंको आते हुए देखा (पासित्ता हट्टतुट्ठ आसणाओ अभुट्ठे ) देखकर बडी अधिक प्रसन्न हुई उसने विचारा आज मेरे भाग्य का उदय हुआ है, जो ये दोनों इभ्यपुत्र मेरे घर पर आये हैं - इस प्रकार विचार कर वह अपने आसन से उठी- (अमुट्ठित्ता सतःपयाई अणुगच्छ३) उठ कर वह सात आठ पैर और सामने गई (अणुगच्छित्ता ते सत्यवाहदारए एवं वयासी) जाकर उसने उन सार्थवाह दारकों से इस प्रकार कहा (संदिसंतु णं देवाणु - qal wag suf. (4780 gez'fa) 247 U9sy (Aroud) Hi As (geftai जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहं तेणेत्र उवागच्छंति) मेसिने तेथे देवदत्ताने घेर चहन्या. (उवागच्छित्ता पचणाओ पच्चोहंति) त्यां पडोयीने तेथे अवहुए| भांथी नीचे उतर्या (पचोरुहित्ता देवदत्ताए गणियाए गिहं अणुपविसंति) नीचे उतरीने गणिन देवदृत्ताना घरभां प्रविष्ट थया (तएण सा देवदत्ता गणिया सत्थवाहदारए एज्जमाणे पासह) गला देवहदत्ता मने सार्थवाह पुत्रोने सावता या (पासिता हट्ट तुङ आसणाओ भन्भुट्ठे ) लेडने ते पूण प्रसन्न થઇ અને તેને થયું કે આજે મારે ભાગ્યદય થયા છે કેમકે આ બંને ઇલ્યપુત્રો (શેઠિયાના પુત્રો) મારે ઘેર આવ્યા છે આ રીતે વિચાર કરીને તે પેાતાના આસન चरथी अली था ( अन्भुट्ठित्ता सत्तट्ठपयाइ ) अली थाने ते सात - माई भगवा सामे ग. अणुगच्छिता ते सत्यवाहदारए एवं वयासी) सामे रहने तेथे सार्थवाह युत्रोने ह्यं -- ( मंदिसंतु ण देवाणुपिया ! किमिहागमणप्पओयण)

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