Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 698
________________ ૬૮. ज्ञाताधर्मकथासूत्रे नवानि द्वे श्रोत्रे, द्वे नयने, द्वे नामिके, जिद्या,स्व मनश्चेत्येतानि सुप्ताfia सुप्तानि तानि यौवनप्राप्त्या प्रतिवोधितानि स्वस्वविषयग्रहणपटुतां प्रापितानि यया सा तथा 'अट्ठारसदेसभा सविसारया' अष्टादशदेश मापाविशारदा-- अष्टादशदेशभाषासु विशारदा-कुशला 'सिंगारागारचारुवेसा' श्रृंगारागार चारुवेषा- १ ङ्गारस्यागारभित्र चारु मनोहरो वेषो यस्याः सा तथा 'संग-गय-दसिय भणिय- चेट्टिए विहिय विलास-संलाबुहाच निउणजुत्तोवयारकुसन्य सङ्गत-गत इसित - भाषितचेष्टितविविध - विलास सल्ला पोलापनिपुणयुक्तोपचारकुशला इति तु व्याख्यातपूर्वम् 'उमिया' उच्छ्रितध्वजा - उच्छ्रिता ध्वजा यस्याः सा तथा 'सहस्स भा' सहस्रलम्मा शुल्केन सहस्रलम्भो लाभो यस्याः सा तथा' विदिन्नछत्तचामरवानिया' वितीर्णछत्रचामरवालव्यजनिका वितीर्णीनि= भूपेन दत्तादि छत्रचामराणि बाल व्यजनिकाचामरविशेषो यह्याः सा तथा 'कन्नी र हप्पयाया' कर्णरथमयाता-कर्णीरथः प्रवहणं नरवाह्ययान विशेषस्तेन' पयाया प्रयातं गमनं दो श्रोत्र, दो नयन दो नासिका के छिद्र ६ जिल्हा ७ स्पर्श ८ तथा मन ९ इन 'सुत नवांगों की यह प्रतिबोधक थी । (अट्ठारसदेसभासा विसारया) अष्टा दश देशों की भाषा में यह विशारदा-निपुण थी । (सिंगारागारचारुवेसा संगयगय हसिय० ऊसियझा) श्रृंगार के आगार के समान इसका सुन्दर वेष था । सगत यावत् निपुण युक्तो चार में यह कुशल थी । संगत, गत, हसित, भणित इत्यादि निपुणयुक्तोपचार पर्यन्त पदों की व्याख्या पहिले की जा चुकी है। इसकी ध्वजा फहराती थी। (सहस्मलंभा) एक हजार रुपया इम की फीम थी (विन्निछत्तचामरवालवियणिया) राजाने इसके लिये छत्र, चामर, और वालव्यजनिये वित्तीर्ण किये थे । (कन्नीरहप्पयाया गाविहोत्था ) ते निपुणु हती (णवगत्तपडियोहिया ) मे अन मे खांचो, मे नाउना आएगा ल, स्पर्श अने भन या नव सुप्त अंगोनी ते प्रतिमोधर हुती. ( अट्ठारस देसमाताविसारया) महार देशोनी लाषाभां ते पडित हती (सिंगारागारचारुवेसा मगयगयहमियऊसिएझमा) श्रंगारना निवासस्थाननी प्रेम तेना वेष सुंदर હતા. સંગત અને બીજા યુકત પચારમાં તે નિપુણુ તેમજ કુશળ હતી સગત, ગત, હસિત, ભણિત, વગેરે નિપુણ યુકતાપચાર સુધીના પદોની વ્યાખ્યા પહેલાં કરવામાં भावी है. ते शुशिअनी धन्न सडेशती हुती. (सहस्सल भा) हुनर उपिया तेनी श्री डती. (विदिन्नछत्तचामरवालत्रियणिया ) रान्नये तेना भाटे छत्र, ग्राभर अने मासव्यननिशमेो (वींनशी) गयी हती. (कन्नीरहपयायाया होत्या) यासगी

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