Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 702
________________ ૬૮૪ ज्ञाताधर्मकथाङ्गमत्र पानखाद्यस्वायं 'उचक्रवडेह' उपस्कारयत उपस्कार्य तं विपुलमशनपान खाद्य स्वायं धूपपुष्यगन्धवस्त्रं गृहीत्वा यत्रैव सुभूमिभागमुद्याने यत्रत्र भन्दा पुष्करिणी तत्रैवोपागच्छत उपागत्य नन्दायाः पुष्करिण्या अदरसामन्ते “थूणामंडवं स्थूणामंडपं छादनादि स्तम्भनार्थ यल्ली का प्ठं'श्रुणाग्थूणा, तत्प्रधानो वस्त्राच्छादितमण्डपः स्थूणा मण्डपस्तम् 'आहणह' पाहन-निवेशयत कुरुतेत्यर्थः 'आसित्तसम्मजियोवलित्त' आसिक्त संमानितोपलिप्त, तत्र-'आसिक्त' आसिक्तं-जलेन सिक्तं 'सम्मजिय' मंमार्जितं कचरापनयनेन प्रमार्जितं 'उबलितं' उपलिप्त-गोमयादिना संलितम् सुगन्ध यावत् कलिनम्--आरवर्ति कालागुरुपभृतिसुगन्धिद्रव्यैः, कलित-युक्तम् ‘करेह' कुरुत 'अम्हे पडिवालेमाणा' आवां प्रतिपालयमाना वयासी) बुलाकर इस प्रकार कहा-(गच्छह ण देवाणुप्पिया)हे देवानुमियों ! तुम जाओ और (विउलं असणं४ उववरखडेह) विपुल मात्रा में अडान, पान, ग्वाघ, और म्वाध आहार निप्पन्न करो (तं विउलं असण ४ धृव पुप्फवत्थं गहाय जेणेव सृभूमिभागे उजाणे जेणेव गंदा पुवखरिणी तेणामेव उवागच्छह) निष्पन्न होने के बाद विपुल अठानादिरूप चतुर्विध आहार को धूप, पुष्प, वस्त्रको लेकर जहां मुभूमि भाग नामका उद्यान है और जहाँ नंदा नामकी पुकाणी है, वहाँ जाओ--(नंदापुक्रवरिणी अदूरसामंते थूणामंडवं आहण ह) वहां जाकर तुम नंदापुष्करिणी से न बिलकुल पास और न बहुत दूर किन्तु उचित प्रदेश में एक स्थूणामंडप को रचो-बनायो-तैयार करो। (आसिनसम्मज्जियोवलित्तं सुगध जाच कलियं करेह, अम्हे पडिवालेमाणा २ चिट्ठह जाव चिट्ठति) जब वह तैयार हो जावे तब उसे जल से सिन्चित करो, कचरा वगैरह णुपिया) से हैवानुप्रिया ! तमे - (विउलं असणं ४ उवकखडेह) मने ०४७ प्रभामा मशन, पान, गाध अने स्वाध माडार तयार ४२ (त विउल असण ४ वपुप्फवत्थं गहाय जेणेव मभूमिभागे उजाणे जेणेन गंदा पुक्खरिणी तेणोमेव उवागच्छह) अनेल्या मशन, पान पाच पगेने या ततन माडार तैयार થઈ જાય ત્યારે ચતુવિધ આહાર તેમજ ધૂપ, પુષ્પ અને વસ્ત્રોને લઈને જ્યાં સુભૂમિભાગ નામે ઉદ્યાન છે અને જ્યાં નંદા નામની પુષ્કરિણી (વાવ) છે ત્યાં જાઓ. (नंदा पुकावरिणीतो अदरमामंते थणामंडव आहणह) त्यो १४२ ना પુષ્કરિણીથી વધારે દૂર પણ નહિં તેમજ તેનાથી વધારે નજીક પણ નહિ એવા યોગ્ય थान तमे २५ भ3५ तैयार ४से (असिस सम्मजियोवलित सुगंध जाव ऋलियं करेह अम्हे पडिवाले मागा २ चिट्टह जाव चिति) स्थू। म ४५ ત્યારે તેયાર થઈ જાય ત્યારે તમે પાણી છાટીને તે જગ્યાને નિશ્ચિત કરે, કચરે

Loading...

Page Navigation
1 ... 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770