Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 697
________________ 'अनगारधममृतवर्षिणीटीका अ ३. जिनदत्त - सागरदत्तवरित्रम् टोक --' तत्थणं इत्यादि तत्र खलु चम्पायां नगर्या देवदत्ता नाम गणिका परिवसति सा च आग्या यावद् अपरिभूता 'चउसडिकलापंडिया' चतुष्षष्टि कला पण्डिता - चतुष्षष्टिसंख्यकाः कलाः नृत्यादि फलवृष्टि पर्यन्ताः तत्र पण्डिता - निपुणा 'चउसडिगणि गुणोत्रवेया' चतुष्पष्टिगणिकागुगोपवेता चतुष्षष्टिसंरूपकाः गणिकागुणाः शृङ्गारचेष्द्ररूपाः • तैरुपपेता - युक्ता 'अउणतीसं विसेसे रममाणी' एकोनत्रिंशद् विशेपान् रममाणा - एकोनत्रिंशद्विशेषान् कामशास्त्रमसिद्वान् अधिकृत्य रममाणाविलासं कुर्वाणा 'एकवीसरइगुणप्पहाणा' एकविंगनि रविगुणप्रधाना एक त्रिंशति सख्यकाः रतिगुणाः, ते प्रधाना 'बत्तीसपुरिसोवयारकुसला' हाईशत् पुरुषोपचारकुशला द्वात्रिंशत् सख्यकाः पुरुषोपचाराः कामशास्त्रप्रसिद्वास्तेषु कुशला-दक्षा 'णवंग सुत्त पडिवोहिया' नवाङ्गमुप्त प्रतिबोधितानि -- ܐܦܪ 'तत्थ णं चंपाए नयरीए' इत्यादि ॥ टीकार्थ- (तत्थण चंपाए नयरीए) उसी चपा नगरीमें (देवदत्ता नाम' गणिया परिवसह ) देवदत्ता नाम की एक गणिका रहती थी । ( अ जा अपरिभूया चउसद्विकला पंडिया, चउसद्विगणिया गुणवया अउणतीस विसेसे रममाणी) यह धन संपन्न थी । यावत् अपरिभून थी - कोइ इसका तिरस्कार नहीं कर सकता था । नृत्यादि से लेकर फष्टपर्यंत की ६४ कलाओं में यह निपुण थी । श्रृगार चेप्यारूप जो ६४ गणिकागुग होते है उनसे यह भरपूर थी । कामशास्त्र प्रसिद्ध २५ विशेषों को लक्ष्य में रख कर यह विलास करती थी । (एक्कवीमरइगुगप्पाणा ) २१ प्रकार के रति गुणों से यह समन्वित थी । (बत्तीसपुरिसोवयारकुसला) ३२ प्रकार के कामशास्त्र प्रसिद्ध पुरुषोंपचारों में यह कुशल थी । (णवंगसुत्तपडिबोडिया ) 'तत्थणं चंपाए नगरीए' इत्यादि । टीअर्थ - ( नत्थणं चंपाए नगरीए) ते यंचा नगरीमा देवदत्ता नाम गणिया परिवसइ) देवदत्ता नाभे गणि रडेती हुती. (अङ्का जाव अपारेभृया चउसटिकापडिया, चउराद्विगणियागुणाववेया अउणतीस विसेसे रममाणी) તે ધન સંપન્ન હતી. અભૂિત હતી એટલે કે કોઇપણ વ્યક્તિની એવી તાકાત ન હતી કે તેના તિરસ્કાર કરીશકે નૃત્ય વગેરેથી માડીને ફળસૃષ્ટિ સુધીની ચોસઠ કળાઓમા તે કુશળ હતી શ્રૃંગારની ચેષ્ટારૂપે જે ચોસઠ ગણિકા ગુણા હાય છે, તેમધા ગુણા તેમા વિદ્યમાન હતા. કામશાસ્ત્રમા પ્રસિદ્ધ ઓગણત્રીસ (૨૯) વિશેષાને લક્ષ્યમા રાખીને તે વિલાસ કરતી હતી (एक्कवी सरगुण पहाणा ) मेश्वीस लतना रतिगुणोथी ते युक्त हुती पुरिसोवयारकुसला) णत्रीस (३२) लतना अभशास्त्रमा प्रसिद्ध पुरुषो

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