Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
1
१०७
अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. २ स. ६ भद्रासार्थवाही दोहनवर्णनम्
9
"
भद्रा सार्थवाही धन्येन सार्थवाहेनाभ्यनुज्ञाता सती हृष्टतुष्टा यावद् विपुलम् अशनं पानं खाद्यं खाद्यं यावत् स्नाता यावत् आर्द्रपटगाटिका यत्रव नागगृहं यावत् धूपं दहति दग्ध्वा प्रणामं करोति, प्रणाम कृत्वा यत्रै पुष्करिणी तत्रैवोपागच्छति। ततः खलु ता मित्रज्ञाति यावत् नगर महिला भद्रां सार्थ नाहीं सर्वालंकारविभूषितां कुर्वन्ति । ततः खलु सा भद्रा सार्थवाही ताभिर्मित्रज्ञाति निजकस्त्रजन सम्बन्धिपरिजननगर महिलाभिः सार्धं तद् विपुलमशन पान खाद्य स्वाद्यं यावत् परिभुञ्जाना च दोहदं व्यपनयति व्यपनीय यस्यादिशः प्रादु(अहाह देवाणुपिया ! मा पड़िबंध करेह) हे देवानुप्रिये ! तुम्हें जैसे सुख हो वैसा करो इसमें देरी मत करो (तरण सा भवा सत्यवाही धन्नेण सत्यवाहेण भणुन्नाया समाणी हट्ट तुट्ठा) उसके बाद उस भद्रा सार्थवाहीने धन्य सेठ से अनुमति प्राप्त कर बहुत ही अधिक हर्पित और सन्तुष्ट चित्त हो (जाव) यावत् (विपुल असण ४ जाव हाया) विपुलमात्रा में चारों प्रकार का आहार तैयार किया - यावत् उसने पुष्करिणी में स्नान किया (जाव उल्लपड साडिया जेणेव नागघरए जाव धूर्व डहइ ) यावत् गीली साडी पहिने हुए ही फिर उसने उस पुष्करिणी से कमलों को लिया और जहाँ नागर आदि थे वहां गई बहुमूल्य पुष्पार्चा कर उनके समक्ष धूप दिखाई । इस प्रकार यहाँ पाचवें मूत्र में जो वर्णन हे वह समझ लेना (उहित्ता प्रणामं करेइ-पणाम करिता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उत्रागच्छड) धूप दिखा चुकने पर उसने उन्हें प्रणाम किया प्रणाम कर फिर वह पुष्करिणो पर वानिम आ गई (एण ताओ मित्तनाइ नियमसयण संबंधिपरियणगगाम हिलाया बंध करेह) हे देवानुं प्रिये । तुमने प्रेम सुम थाय तेभ उरो, भोडु शे नहि (तए गं सा भावा सत्यवाही बन्ने सत्यवादेणं अमणुन्नाया समाणी હૃદ તુટ્ટા) ત્યાર બાદ તે ભદ્રા સાવાહી ધન્ય સાવિાહની પાસેથી આજ્ઞા મેળવીને गूण ४ असन्न भने संतुष्ट था. (जाव) यावत् (विपुलं असणं ४ जाव व्हाया ) પુષ્કળ પ્રમાણમા ચારે પ્રકારનેા આહાર બનાવરાવ્યો. અને ત્યાર પછી તેણે પુષ્કર लीमा स्नान यु (जाव उल्लपडसाडिया जेणेव नागवर ए जान धूवं F77) ભીના લુગડે જ તેણે પુષ્કરણીમાંથી કમળા લીધાં અને નાગઘર વગેરેના દેવસ્થાનમા ગઈ. ખૂબ જ કતિ પુષ્પો વગેરેથી તે બધા દેવાની પૂજા કરી તેમની સામે ધૂપસળી સળગાવી. આગળનું વર્ણન પાઠકાએ પાંચમા સૂત્ર પ્રમાણે જ लावु लेखे (उहित्ता प्रणाम करेड़ पणामं करिता जेणेव पोखरिणी ते शेव उवागच्छङ) धूप या तेगु तेभने अशुभ इरीने पुष्करिणीना डिनारे भावी गई. (तए णं ताओ
अशुभ या मित्तनागमण