Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षि टीका अ, १ सू. १५ अकालमेघदोहदनिरूपणम् २०२ जणियसोम्मरूवे' प्रेवोलमानवरललितकृण्डलोज्वलितवदनगुणजनितसौम्य रूपः, तत्र प्रयोलमाने-दोलायमाने ये वरललितकुण्डले श्रेष्ट सुन्दरकुण्डले ताभ्याम् उज्वलितं प्रकाशमान वदनं-मुखं तस्य यो गुणः कान्तिविशेषरूपः, तेन जनितं-सजात सौम्यं शोभनरूपं यस्य सः। पुनरपि स सुरः शरच्चन्द्रेणोपमीयते। 'उदिओविव कोमुईनिसाए' उदित इव कौमुदीनिशायांकार्तिकपौर्णमास्याम्, समिच्छरंगारउज्वलियमज्झभागन्थे' शनैश्चरागारो. ज्यलितमध्यभागस्यः शनैश्चरमङ्गयोः उज्वलितः दीप्यमानः सन् यो मध्यभागे तिष्ठतीति सः, शनिमङ्गलयोर्मध्ये प्रकाशमानः, 'णयणाणंदे' नयनानंद: नेत्रप्तिकरः, 'सरयचंदे' शरच्चन्द्र: शारदीय चन्द्र इव. तत्र कुण्डलद्वयमध्यगतं मुखमण्डलं शनैश्वर मङ्गलमध्यगतः कार्तिक पौर्णमास्यामुदितश्चन्द्रइव नयनाऽऽनन्दकारीत्यर्थः । साम्प्रतं मेरुणोपमीयते-'दिव्योसहिपमाग परललियकुंडलुज़लिपबयणगुणजणियसोम्मख्वे) कानों में जो इसके कुडल थे वे श्रेष्ठ और अधिक सुन्दर थे। तथा हिलाते हुए नजर आ रहे थे। या दोला जैसे प्रतीत होते थे। इन दोनों से इसका मुखमं. डल प्रकाशमान था। इसलिये उसकी कान्ति विशेष से इसका रूप विशेष सौम्य हो गया था। (उदिओ कोमुई निसाए) अतः इसका मुखमंडल (कार्तिक की पूर्णिमा में उदित हुए तथा (सणिच्छरंगार उज्वलिय अज्झभागत्थे) शनैश्चर और मंगवग्रह के बीच में प्रकाशमान (गयणाणंदे) नैत्रतृप्ति कारक (सरयचंदे इव) शरत्कालीन चन्द्रमा के जैसा आनदकारी था। तापर्य इसका यह है कि जिस प्रकार शनैश्चर और मंगल ग्रह के मध्य में रहा हुआ कार्तिक पौर्णमासी का चन्द्रमा नयनानन्दकारी होता है उसी तरह दोनों कुंडलों के मध्य में रहा हुआ इसका मुखमंडल भी नेत्रों को मानभां मन २७ २हो तो. वोलमाणवरललियडलुजलियवयण गुणजणियसोम्मरूवे) अनमा परेसा दो श्रे०४ मने पूर २२२२६ हुता. ते ડોલતાં હતાં. એથી ને હીંચકા જેવા લાગતા હતા. તેનું મુખમંડળ બન્ને કુંડળેથી દીપી ઉઠયું હતું. એનાથી વિશેષ કાતિવાળા દેવનું રૂપ વિશેષ સૌમ્ય લાગતું હતું (उदिओ कोमुई निसाए) मेटदा भाटे तेनु मुभम ति ४ पूणिमाना हिवसे अध्य पामेला (सणिच्छरंगारउज्जलियमझभागत्थे) शनि मने मग अडानी मध्ये प्रशता (सरयचदे इव) १२६४ाचीन द्रनी भणयणाणदे] नेत्रोने तृप्ति આપનાર અને આનંદ પમાડનાર હતું. તાત્પર્ય એ છે કે જેમ શનિ અને મંગલ ગ્રહોની વચ્ચે કાતિક પૂર્ણિમાને ચંદ્રનયનને આનંદ આપનાર હોય છે તેમજ બને
गानी १२ये २९ तेनु भुपम नेत्रोने मान साधना तु. (दिव्वोसहि૨૭