Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथासूत्रे
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'जाव' यावत् 'सांग सुरंग' सर्वाङ्ग इन्दराङ्ग तंत्र - सर्वा=िसमस्तानि अङ्गानि= शीर्षोदर पृष्ठभुजइयो रोल्पाणि उपलक्षणात वर्णनासिका चक्षुर्हस्तपादया नव के शर्मा पाण्युराङ्गानि तैः सुन्दर अनं शरीरं यग्यनं, यहा-सुन्दराणि अद्गानि=शरीरावयवाः हरतादयो यस्य त सकलशरीरावयवसौन्दर्यसम्पन्नं 'दार' दारकं - द्वारयति = विदारयति पित्रादि चिन्तां यः स दारकः पुत्रः तं 'प्रयाया' प्रजाता= प्राजनयत । 'तपणं' ततः खलु बालक जन्मानन्तरं, 'ताओ ' ताःधारिण्याज्ञाकारिण्यन्तवमिमायशाच, 'अंगडियारिकी' अङ्गपरिचारिकाः= सेविकाः धारिणीं देवं 'लव मागे' नवसु मासेषु 'जान' यावत् 'दारगं पया' दारकं प्रजनितां = द्वारकजन्मदात्री 'पाति' पश्यन्ति 'पासिता' दृष्ट्वा मध्यरात्री के समय में - (मुकुमालपाणिपाय जाब सन्चंगं सुदरं दारण पायाया) कुमार हाथ और पैर वाले ऐसे सङ्ग सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । मस्तक उदर छाली पृष्ठ, दो जांबे, दो भुजा कर्ण नासिका ये आठ अङ्ग हैं, चक्षु, हस्त, पाद जंघा, नख, केश, और मांस ये उपाङ्ग हैं ये अंग और उपाग दोनों ही उस बालक के अनि कोमल थे। यहां जो यावत् श आया है वह पूर्व में कथित पाठ का सूचक है। दारक शब्द का यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है कि जो पिता माता आदि की चिन्ता को दूर करें वह द्वारक है। (तनं ताओ अंगपडियाग्यिाओ धारिणीं देवीं नवह मासाणं जावदारगं पासंति, पामिता सिन्धं तुरियं, चवलं, वेइयं जेणेव - सेणिव राया तेणेव उद्यागच्छेति) इसके बाद नवमास पूर्ण होने पर दारक (पुत्र) को जन्म देने वाली इस धारिणीदेवी को जब उसकी अंगपरिचारिकाओंने देखा तो देख कर वे शीघ्र ही उस पुत्र जन्म के वृत्त को पाणिपाये जा सुंदर पायाया) सुझेभल हाथ भगवान भने सर्वा સુદર એવા પુત્રને જન્મ આપ્યો માથુ ઉદ, છાતી, પીઠ, બે જાઓ, અને એ ભુજા આ आठ सय है. धन, नाऊ, आभो, हस्त, पाठ, धा, नम, देश, भने भांग मा ઉપાડ઼ો છે. તે બાળકના આ અટ્ટો અને ઉપાડ઼ો અને સુદર હતાં. અહીં જે ‘ચાવ’ શબ્દ આવ્યા છે તે પૂર્વ કથિત પાના સૂચક છે. દારક શબ્દની વ્યુત્પત્તિલભ્ય અર્થ थे हे भाता पिता बोनी शिता भटारे ते द्वार है. (तएणं नाओ अंगपडियारियाओ धारिणीं देवीं नहं गाणं गाव दागं पायायं पारंति, पासिता, सिग्धं तुयं च देय जेमेन सेणिए राया तेथेच उद्यागच्छंति) त्यारमाढ નવ માસ અને સાડાસાત રાત્રિ પૂરી થયા પછી જ્યારે ધારિણી દેવીએ દાન્ડ (પુત્ર)ના જન્મ આપ્યું ત્યારે તેમની અગે પરિચારિકાએ તે જોઇને સત્વરે આ પુત્ર