Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्म कथासूत्रे गत नाका-लावण्यरहिता, निच्छायामागहीना अतएव गतश्रीका-शोभावजिता, 'पमिहिनभूमणपड़नखुम्मिय संचुन्निय धवलवलयपन्भट्ठ उत्तरिजा' प्रशिथिलभूषणा-गोकेन कृशाङ्गत्वाद् आदौ पशिथिलानि भूषगानि यन्याः सा, नतःगोकाधिक्येनातिकात्वान कतिपयाः पतन्तः, कतिपयाः खुम्मिया' वक्रीमृताः, 'खुम्मिय' इनि देशीयः शब्दः, तथा कतिपयाः-संचूर्णिताः त्रुटिताः स्फुटिता इत्यर्थः धवलया यस्याः सा, प्रभ्रप्टं शरीरात् पृथग्भूतम् उत्तरीय शरीराच्छादनवस्त्र यस्याः सा, नतः कर्मधारयः। 'ममालविकिन्नकेसहत्था' मुकुमार-विकीर्णकेशहस्ता मुकुंमार:=मुकोमलः, विकीर्णः-प्रसृत के शहस्त:केशपागो यस्याः सा, केशदाद ग्रे वर्तमानो हस्तगब्दः समृहार्थकः । 'मुच्छावमणचेयगई' म वशनष्टचेनोगुर्वी-मू वशेन नप्टे चेतसि सति गुर्वीघालवलयपमहउत्तरिजा) शरीरका लावण्य न मालूम कहां चला गया। प्रकाश से विहीन हुई वह विलकुल शोभो से विहीन बन गई। गोक से वह इतनी अधिक गाड़ हो गई कि जो आभूपण उसने अपने मगर पर धारण कर रवखे थे वे कितनेक तो शिथिल हो गये-तथा गांककी और अधिक वृद्धि होने से शरीर पर से कितनेक गिरने लगे, कितने क. वक्रीभृत हो गये. फितने के नीचे गिर कर चूर्णित-दृठ-फूटगरे। उत्तरीय वस्त्र जो इसने, धारण कर रखा था वह भी शरीर पर से खिसकने लग गयो। उसे भी संभालने की हिम्मत इसमें नबों रही। (पन विभिन्न के हत्य) माथे का मुकुनार के ग ममूह इतस्तत: विदर गया (मुन्छावसण चेयामई) मृी भी आने लगी इस से चिनमें जो समय-समय पर रुचि जगती थी वह भी नष्ट हो चली-अथवा मृई के वग जब२ यर चेतना रहित मी बन जाती थी तब इसका शारीर वलयामह उत्तरिजा) शुदीनुसाएy aeो ध्याय अश्य २६ गयु ? નિસ્તેજ થઈને છે એકદમ ભારહિત થઈ ગઈ શકથી તે એટલી બધી દુબળ થઈ ગઈ કે જે ઘરેણાઓ તેણે પહેર્યા હતા તેમાંથી કેટલાક તે ઢીલા થઈ ગયા, અને છોકની વૃદ્ધિ થના શરીર ઉપરથી કેટલાક નીચે બગી પડયાં, કેટલાક વક થઈ ગયા, કેટલાંક નીચે પડીને ટુકડે ટુકડા થઈ ગયાં. તેનું ઉત્તરીય વસ્ત્ર–જે તેણે શરીર ઉપર ધારણ કર્યુ હતુ તે પણ શરીર ઉપરથી ખસવા માધ્યું તેને સાચવपानी पy ताल तमा न (ममा विकिन्नकमहत्या) भाथाना मु मा भनेभ नव्यस्त बई गया. ( मुच्छावमणट्टचेयगरुई ) ते છિન થવા લાગી તેથી વખતો વખત જે તેને ઈટ વસ્તુ મેળવવાની ઈચ્છા થતી ત પણ સાવ નાશ પામી અથવા મૂવશ થઈને તે ચેતના વિહીન થઈ જતી