Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधमांमृतवर्षिणी टाका. अ १ सू.३५ मेघकुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम्
सन्तः हृष्टाः स्नाता यावत् एकाभरणवसनगृहीत निर्योगाः यत्रैव श्रणिका राजा तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य श्रेणिकं राजानमेवमवदन - संदिशन्तु खलु हे देवानुप्रियाः यत् खलु अस्माभिः करणीयम् । ततःखलु स श्रेणिको राजा तत् कौटुम्बि कचर - तरुण सहस्रमेवमवदत् गच्छत खलु हे देवानुमियाः यूयं मेवकुमारस्य बुलाओ ! राजा की इस प्रकार आज्ञा पाकर उन लोगोंने शीघ्र हो ऐसे राज पुरुषों को बुलाया ( तरणं कोडुंवियवर तरुणपुरिसा सेणियस्सरन्नो कोड बियपुरिसेर्हि सद्दाविया समाणा हट्ट जाव हियया व्हाया जाएगाभरणगहिय णिज्जोय जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छंति ) इसके बाद वे कौटुम्बिक श्रेष्ठ तरुण पुरुष श्रेणिक राजा के मामने उन कौटुम्बिक पुरुषों के द्वारा बुलाये जाने पर बहुत अधिक हर्षित हुए और संतुष्ट हुए । उसी समय उन्होंने स्नान किया काम आदि पक्षियों के लिये अन्नादि देने रूप बलिकर्म आदि क्रियाएँ की । बाद में एक से आमरण एक से वस्त्र पहिन कर और एक जैसी पगडी बांधकर जहां राजा श्रेणिक थे वहाँ आये । ( उवागच्छित्ता सेणियं रायं एवं वयासी) आकर उन्होंने श्रेणिक राजा से इस प्रकार कहा ( संदिमह णं देवाणुप्पिया ! जण्णं अम्हेहिं करणिज ) महाराज ! आज्ञा कीजियेजो कार्य हमारे करने लायक हो उसकी । (तएण से सेणिए राया त कौडु बिश्वरतरुणसहस्सं एवं क्यासी ) इस के बाद श्रेणिक राजाने उन हजार युवा कौटुम्बिकपुरुषों से ऐसा कहा ( गच्छह ण देवाणुराजसेवीने गोसाव्या. (तरणं कोडुं वियचरतरुणपुरिसा सेणियस्सरन्नो
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कोड बियपुरिसेहिं सदाविया समाणा हट्ट, जान हियया व्हाया जात्र एगाभरणगहिय णिज्जोय जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवोगच्छंति) ત્યાર ખાદ તે કૌટુબિક શ્રેષ્ઠ તરુણ પુરુષો શ્રેણિક રાજાની સેવા માટે કૌટુમિક પુરુષા દ્વારા ખોલાવાતા જાણીને બહુ જ પ્રસન્ન અને સંતુષ્ટ થયા. તેઓએ તરત જ સ્નાન કર્યું. કાગડા વગેરે પક્ષીઓને અન્ન અણુરૂપ અલિકમ કર્યું. ત્યાર પછી એક જેવા આભરણુ એક જેવા વસ્ત્ર પહેરીને, અને એક જેવી પાઘડીએ બાંધીને श्रेणि राजनी चासे गया. ( उवागच्छित्ता सेणियं रायं एवं वयासी) त्यांन्धने श्रेणिष्ठ शन्नने तेभणे - ( संदिसह णं देवाप्पिया ! अम्हेहिं करणिज्जं ) हे महाराज ! सभारे साथ अभनी आज्ञा आयो (तरणं से सेणिए राया तं कोडुंबियवर तरुण सहस्सं एवं वयासी) त्यार माह श्रशिष्ट गन्नये हन्तर टुमि युवान युषाने उछु ! ( गच्छहणं देवाणुप्पिया! मेहस्स कुमा