Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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शाताधर्मकथानमन्त्र संपद्य बलु-स्वीकृत्य 'विहरित' विहम्, इच्छामीनि पूर्वेण सम्बन्धः । मेषमुने वचः श्रुत्वा भगरानाह-'अहामुहं' इत्यादि । हे देवानुप्रिय ! यथामुग्वं, प्रमादं माकुरू। ततः-भगवदानावचनश्रयणानन्तर बलु स मेघोऽ नगारः प्रथम मान प्रथम मासे, 'च उत्यं' चउत्थेणं' चतुर्थचतुर्थेन चतुर्थ चतुर्था नन्तरं चतुर्थ-चतुर्य नेन. चतुर्थचतुर्थ मक्तेन प्रकोप बासे नेत्यर्थः, अणिकि त्वत्तण' अनिक्षिप्तेन अविश्रान्तेन 'तबोकम्मेण' तपः कर्मणा, दिया' दिवा-दिवसे 'टाणुक' स्थानीयुटुक-उत्कुटुकाऽऽमनेन, 'मराभिमुहे' सूर्याभिमुवः, आयावत्रण भूमीए' आतापनभूमी, आयावेमाण' आतापयन् आतापनां कुर्वन् 'रा' रात्री 'वीरामणेण' वीरासनेन=सिंहासनोपविष्टस्य भुविन्यस्तपादस्यापनीतसिंहासनस्येव यदवस्थानं तद् बीरामनं तेन, शीतातापनां कुर्वन् व्यवसनीय माग सहित एक वर्ष में करना चाहताहूँ अथवा इसका यह भी मतलब होता है कि में निर्जगविशेषरूप गुणों के कारण भूत तप को तृतीय माग सहित १ वर्ष में (१६ मास में) करना चाहता हूँ। (अहामुह देवाणुपिया। मा डिबंधं करेह) मेघ कुमार की इस बात को सुनकर प्रभुने उन में कहा कि हे मेय! तुम्हें जिम तरह सुख मिले-वैमा करो-१क्षण भी प्रामाद मत करो। (तपणं से मेहे अणगारे पढम माल चउत्थं चउत्थेणं अणिरिश्वत्तेणं तपोकम्येणं दिया ठाणुक्कुटप सुरभिमुहे आयावणभूमीए अबाउट गणं आयात्रमाण र वीरासणेणं) इसके बाद उन मेधकुमार मुनि राजने प्रथम माम में चतुर्थ चतुर्थ भक्त निरन्तर किया। दिन में उत्कुटुकामनमे आतापन गमि पर वठेकर मूर्य की तरफ मुख करके आतापना लेते। . गत्रि में मुग्ववत्रिका और चोलपट के अतिरिक्त नयां का छोडकर શિવ તપ ત્રીજો ભાગ શદિન એક વર્ષમાં કરવા ચાર છુ અથવા આનો અર્થ આ પ્રમાણ પણ થઈ શકે છે કે , નિર્જ. વિશેષરૂપ ગુણોને કારણભૂત તપને ત્રીજા 11 महिना मा महिलामा या या ब्रहामु दाणुप्पिया! मा पटियध करेह) यानी 2 वान Pavilन मग तमन यु-से ઘ' તમને આ કામ ગુ મેળ તે કં એક છે ! પબ પ્રગટ કરે નહિ. (anणं से महे सणगारे पमं माम चउम्य च अगि कारण ना जम्मेणं दिया गया माभिमूहे आयाया भोग घाउमा धायापाण ग वीनाम)
न्यायनिक - Anttitud" चतुय यतन tan.2.20 - 14नगि ..नारद આપના લેતા ના વિમા રાખવીચિ' અને ચલ પટ શિવાયના વ ત્યને