Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथास भगवान महावीरः पूर्वानुपूर्ध्या तीर्थकर परम्पया 'चरमाणे' चरन् , ग्रामानुग्रामं 'दुइजमाणे द्रवन्-मुखं सुखन निराराधयमयात्रानिर्वाहपूर्वकं विहरन् यंत्रैव गाजगृहं नगरं गुशिलक चैत्यम्-उद्यान. तत्र यावद्-यावच्छन्दे नेट दृष्टव्यं-तत्र वनपालम्याग्रहमादाय संयमेन तपसाऽऽत्मानं भारयन् विहरति आम्ते। तत खलु 'मे' इदमव्ययं पदं प्रस्तुत वस्तुनः परामर्गेऽर्थे वर्तते तेन 'से' इत्यस्य तरिमन्नित्यर्थः, राजगृहे नगरे यत्र सिंघाडग० महयो बहुजण महेइ वा' नाटक० महान् वहुजनशब्दः शृङ्गाटकत्रिकचतुष्कचत्वर चतुर्मुख महापथ पयेषु महान् बहुजनशब्द परस्पर भाषणादिरूपः 'इ' इत्यलंकारार्थः वा शब्द: समुच्चयार्थकः 'जाब यावत् अत्र यावत्करणादिदं बोध्यम्-? 'जणवूहेद वा जनव्यूहः-जनममृहः 'जणवालेयाः जनबोल:-जनानां परम्पर कथनरूपः (समणे भगवं महावीरे) श्रमण भगवान महावीर (पुवाणुपुचि चरमाणे). तीर्थकर की परंपरा के अनुसार विचरते हुए तथा (गामाणु गाम दूइ जमाणे) ग्राम से दूसरे ग्राम विचरते हुए (सुसुहेणं विहरमाणे) एवं मुग्व पूर्वेक-विना किमी विघ्न बाधा के अपनी संयम यात्रा का निवाह करते हुए विहार कर (जणामेव रायगिहे णयरे) जहा राजगृह नगर था और (णमिलए चेहए) गुण शिलम पैन्य-उधान था उस में (जाब विहरइ) तप
और संयम से अपनी आत्मा को मावित करते हए वनपालक की आज्ञा प्राप्त कर उतर गये। (तपणं गयगिद्दे णयरे निघाडगतिगच उक्कचच्चर चउम्मुह महापहपहेमु महथा बहुजणमद्देई वा इसके बाद उस राजगृह नगर में श्रृंगाटक, त्रिक, चत्वर, चतुमच, महापथ एवं पथ में बहुत बडा अनेक मनुष्यों का परम्पर भापणादिरूप शब्द हुआ। 'जाव' पदसे इस पाठ महावीरे) अभार मावान महावीर (पयाणपब्धि चरमाणे) तीर्थ शनी ५२५रान अनुमहीने वियर ४२ता नेमा (गामाणुगामं दडजमाणे) मे भया pillम वियर ४२ता (मुहं गृहेगं विहामाण) भने सुमथी पy addना विन माया का पोतानी संयम यात्रा ता ४२ता विडा. दीने (जेणामे व गयगिहे णयरे) त्या ना तु भने (गुगसिलए चेडए) गुशुशिल: न्य तु, तेभा (जाव विहरड) वनपासनी माज्ञा ने पतीभा तर्या अने. તે તપ અને સયમ દ્વારા પિતાના આત્માને ભાવિત કરતા વિચારવા લાગ્યા. (नामा रागिहेयरे सिंघाडगनिगचउक्कचञ्चरचउम्सुहमहापहपहेसु महया बहुजामहे वा) त्या२६ Eps नामा श्रृंगार. त्रि, यावर यतुभुम, મહાપ અને પથમાં બહુજ મોટા પ્રમાણમાં અનેક માણસના પરસ્પર વાતચીતને बांधाट यो 'जाव' Vastu l पाउने संबड थयो छ-(जणबहेडवा) घा