Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ.१ २० मेधकुमारजन्मनिरूपणम् २४१ ताः तथाभूतां देवीं दृष्ट्वा सिग्छ' शीघ्रं 'पुत्रजन्मवृत्तं झटिति निवेदितव्य' मित्यभिप्रायात् 'तुरियं' त्वरितं, अत्र विलम्बो न कर्त्तव्यः' इति निश्चयात्, 'चवलं चवलं 'भूपं प्रतिद्रुततरं निवेदयिष्यामः' इति चिन्तनात् 'वेगियं' वेगित= अतिशीघ्रं प्रियं वृत्तं निवेद्य भूपं तोपयिष्यामः' इतिहेतोःकायव्यापार सद्भावात्, यत्रैव श्रेणिको राजा तत्रैवोपागच्छंति, उपागत्य श्रेणिकं राजानं जयेन विजयेन वद्धयन्ति, वर्द्धयित्वा 'करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिंक करतलपरिगृहीतं-बद्ध करतलद्वयं शिर आवर्त-शिरसि-ललाटप्रदेशे आवर्तनंराजा से कहना चाहिये इस विचार (ख्याल) से जल्दी जहां श्रेणिक राजा थे वहां पहुंची। सूत्रकारने जो यहां त्वरित आदि शब्दों को क्रिया विशे. पण परक रक्खा है उनका अभिप्राय ऐसा है कि उन अंगपरिचारिकाओंने ऐसा विचार किया-इस समाचार के पहुँचाने में जरा भी विलम्ब नहीं करना चाहिये इसलिये उनकी चालमें त्वरा आ गई थीं। चलते समय उनकी गति बहुत अधिक द्रुततर बन गई थी कारण राजाको इस वृत्तान्त की खबर हम बहुत जल्दी करे ऐसा निश्चय उनके हृदय में काम कर रहा था। अतिशीध्रयह प्रिय बात राजा से कहकर उन्हें हम संतुष्ट करें इस अभिप्राय से उनका शरीर विशेष चंचलनारूप वेग से युक्त हो रहा था। (उवागच्छित्ता सेणियं राय जएणं वद्धावेंति) ज्यों ही वे राजा के पास पहुंची तो उन्होंने सब से पहिले उन्हें जय विजय शब्दों से बधाया (वद्धावित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी) वधाने के बाद दोनों हाथों को अंजलिरूप में જન્મના સમાચાર રાજાની પાસે પહોંચાડવા જોઈએ આમ વિચારીને તેઓ જલદી શ્રેણિક રાજાની પાસે ગઈ. સૂત્રકારે અહીં જે “ત્વરિત’ વગેરે શબ્દોને ક્રિાવિશેષણના રૂપમાં પ્રયુક્ત કર્યા છે તેને ભાવ એ છે કે તે અંગપરિચારિકાઓએ વિચાર્યું” કે આ સમાચાર રાજાની પાસે અવિલમ્બ પહોંચાડવા જોઈએ, એથી જ તેમની ચાલ માં સ્વરા (ઝડ૫) આવી ગઈ હતી. ચાલતી વખતે તેમની ગતિ ખૂબજ પ્રતતર થઈ ગઈ હતી, કેમકે તેમના મનમાં નિશ્ચિતપણે આ વિચારે ઉદ્દભવ્યા કે આ સમાચારની જાણ રાજાને જલદી કરીએ તો સારું. અતિશીધ્ર આ પ્રિય સમાચાર રાજાને આપી તેમને સંતુષ્ટ કરીએ આ હેતુથી તે બધી અંગપરિષ્કિાઓનું शरी२ विशेष यता३५ वेगथी युत थ/ रघु तु. (उवागच्छित्तो सेणियं रायं जएणं विजएणं वदावेंति) सतनी सामे पडायतानी साथै सौथी पडला त म पन्यिायाय न्य' विय' 241 शहाथी तेभने धाव्या. (बद्धा. वित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसाव मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी) वधाव्या ૩૧