Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्पिणीटीका सू.१२ अकालमेघदोहदनिरूपणम्
१६३ परिष्वष्कितेपुवातस्यबायोवंशेन विले गगने चपलं यथा स्यात्तथा परिवष्किता:-चतुर्दिक्षु गमनक्रियापरिणतास्तेपु, 'निम्मलवरवारिधारापगलि यपयंडमारुयसमाहयसमोत्थरंतउवरिउवरितुरियवासंपवासिएसु' निर्मलबरवारिधारा प्रगलितप्रचण्डमारुतसमाहतसमवस्तुणद् उपर्युपरित्वरितवर्षमकृप्टेपु, निर्मलाउज्वला, वरा श्रेष्ठा निरुपद्रवा, वारिधारा-जलधारास्ताभिःप्रगलितं प्रचलितं प्रचण्डेन-सवेगेन मारुतेन वायुना समाहतं प्रेरितम् अतएव समवस्तृणत् पृथ्वी आच्छादयत् उपयुपरि सातत्येन त्वरितं-शीघ्रं यद्वर्षे तत्प्रवृष्टेषु अपितुमारब्धेषु मेघेषु, इति पूर्वेण सम्बन्धः, 'धारापहकरणिवायनिब्याविय' धारा पहकर (प्रकर) निपातनिर्वा पिते, पाराणां जलधाराणां पहकर-समूहः, तस्य निपातेन निर्वापिते शीतलीकृते, 'निर्वा पिते' त्यत्र प्राकृतत्वात्सप्तम्येकवचनलोपः मेइणितले' मेदिनीतले भूतले, पुनः कीदृशे मेदिनीतले इत्याह'हरियगणकंचुर' हरितगणर्कचुके, हरितानां तृणानां यो गण: समूहःस एव कञ्चुको यस्य तस्मिन्, 'पल्लवियपायवगणेसु' पल्लवितपादपगणेषु-सपत्रितवृक्ष तथा-जिन में विजली चमक रही है और जो गर्जनारत्र [शब्द से विशिष्ट हो रहे हैं (वायवप्लदिउलगगणचवलपरिसक्किरेसु) वायु के वश से जिनका विपुल आकाश में चारों दिशाओं की ओर चपलता लिये हुए गमन हो रहा है (निम्मलवरवारिधारापगलियपयंडमारुयसमाहय“समोत्थरंत उवरि उवरि तुरियवासंपवासिएलु) निर्मल जल की धारा से प्रचलित तथा प्रचंड वायु के वेगसे प्रेरित ऐसी तराऊपर निरन्तर गीरती हुई वृष्टि को कि जिस से समस्त पृथ्वी मंडल इकदम आच्छादित हो जाय जो बरसा रहे हों ऐसे मेघों में विचरण करती हुई जो अपने दोहद की पूर्ति करती हैं। (धारापहकर निवायणिवाविय मेइणितले) तथा जलधारा के समूह के निपात से शीतल हुए भूमितल पर कि जो(हरियगणकंचुए) हरितार्कुररूपी वस्त्र वाला बन रहा है-(पल्लवियपायव(वायवसविउलगगणचवलपरिसक्किरेसु) रे भेघा पवन। विस्तृत माश मन यारे दिशामामा गतिशीर छ. (निम्मलवरवारिधारापगलियपचंडमारुयसमाहय समोत्थरंत-उवरि-उवरि तुरियवासं पवासिएस) જે મે પ્રચંડ વાયુ વેગથી પ્રેરાઈને નિર્મળ જલધારાઓ વરસાવી રહ્યા છે, જેના દ્વારા સંપૂર્ણ પૃથ્વી એકદમ ઢંકાઈ જાય છે, એવા મેઘે દ્વારા પિતાનાં ઉપર પડતી सतत वर्षा धारामा २ (भात) पोताना हानी पूति ४२ छ, (धारापहकर निवायणिवावियमेइणितले) तभन्न धारामाना वर्ष युथी शीतण थयेटी पृथ्वी ५२-32 (हरियगणकंचुए) elu मयुरोना युवाणी थ७ छ.