Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका सू ८ स्वप्नफलनिरूपणस्
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वग्रहेण जानाति, अवगृह्य = अर्थावग्रहतो निर्णीय 'ई' ईहां = सदर्थपर्यालोचनाभिमुखां गतिचेष्टाम् 'अणुपविस ' अनुप्रविशति = अन्तोऽवतरति स्वान्तः - करणं विचारसरणौ प्रवेशयतीत्यर्थः, अनुप्रविश्य 'अप्पणी' आत्मनः = स्वस्य 'साभाविएणं' स्वाभाविकेन= स्वाभावसिद्धेन 'मइपुच्चएणं मतिपूर्वकेण-मुक्ष्मधर्मालोचनरूपो मानसो व्यापारः तत्पूर्वकेण क्ष्मार्थपर्यालोचनपूर्वकेण बुद्धिविष्णाणेण बुद्धिविज्ञानेन = गृहीतार्थ परिच्छेद पूर्वक विशिष्टक्षयोपशमजनितोपयोगवि शेषेण तस्य स्वप्नस्य 'अत्थोग्गहं' अर्थात्रग्रह = स्वप्नार्थनिर्णयं करोति, कृत्वा धारिणीदेवीं ताभिः = वक्ष्यमाणरूपाभिः 'जान' यावत्, 'इष्टाभिः' इत्यारभ्य यावत् हृदय महलादनीयाभिः = हृद्गानन्दजननयोग्याभिः 'मिउमहुररिभियगं मीरस स्सिरियाहिं' मृदुमधुररिभितगम्भीरसश्रीकाभिः - मृदुमधुराभिः = सुकोमलवर्णपदगओगिण्डिइ) उस स्वप्न का अवग्रह ज्ञानद्वारा सामान्यरूप से विचार किया ( ओगिता ) फिर सामान्य विचाररूप अर्थ अवग्रहज्ञान - ज्ञान करने के बाद (ई पविस) वे सदर्थ के पर्यालोचन के अभिमुख हुए ईहा ज्ञान में प्रविष्ट हुए अर्थात् उस महास्वप्न का चिन्तवन फिर उन्होंने ईहाज्ञान से किया (प विसित्ता अप्पणोसा भाविएणं मड पुन्वएर्णबुद्धिविष्णाणे णं तस्स सुमिणस्स अत्योरग करेइ) ईहा ज्ञान से जब वे उस महास्वप्न का विचार कर चुके तव फिर अपने स्वाभाविक गतिपूर्वक बुद्धि विज्ञानद्वारा उस महा स्वप्न के अर्थ का उन्होंने निर्णय किया। मुक्ष्म धर्म के आलोचनरूप जो मानसिक व्यापार होता है उसका नाम यति है । तथा गृहीत अर्थ के परिच्छेद् पूर्वक जो विशिष्ट क्षयोपशम होता है और उस क्षयोपशम से जो उपयोग विशेष होता है उसका नाम बुद्धि विज्ञान है । ( करिता ) इम विचार करके (धारिणीं देवी ताहिं जात्र हियय पल्हायणिज्जाहिं मित्रमहुरविद्यायु. (ओगिण्हित्ता) सामान्य विद्यारथी अर्थावग्रहज्ञान भेजव्या च्छी (ई पत्रिसह) ते सहना पर्यासोयन तर अलिभुण थता डिज्ञानभां प्रविष्ट थया, अर्थात् ते भडा स्वप्ननु तिन तेथेोग्ये घडा ज्ञानवडे उयु . ( पत्रिसित्ता अप्पणो साभाविणं मन्त्रण वुद्धिविण्णाणे णं तस्स सुमिणस्स अत्थोग्यहं करेइ) हाज्ञानવડે જ્યારે તેઓએ તે મહાસ્વસ વિષે વિચાર કરી લીધા ત્યારે ફરી પોતાની સહજ મતિપૂર્વક બુદ્ધિ વિજ્ઞાનવડે તે મહાસ્વપ્નના અનેા નિર્ણય કર્યાં. સૂક્ષ્મ ધર્મની આલેાચનારૂપે જે માનસિક વ્યાપાર હાય છે, તે મતિ છે. તેમજ ગ્રહણુ કરાયેલા અર્થના પરિચ્છેદપૂર્વક જે વિશિષ્ટ ક્ષાપશમ થાય છે, અને તે ક્ષયાપશમવડે જે उपयोग विशेष होय हे ते मुद्धिविज्ञान छे. (करिता) भारीते वियारीने ( धारिणीं देवीं ताहिं जाव हिययपल्हायणिजाहिं मिउमहुररिभिय गंभीरसम्सिरीया हिं
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