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पर्व की जीवन-कला: आश्रम प्रणाली ... 369
जीने के दो ढंगः अस्तित्व से लड़कर या स्वीकार में बहकर / धार्मिक व्यक्ति अर्थात स्वीकार में जीने वाला / जीवन से लड़ने के लिए ईश्वर का इनकार जरूरी / शास्त्रसम्मत कर्म अर्थात जीवन-विज्ञान द्वारा सम्मत कर्म / चार आश्रम व्यवस्था में जीवन का क्रम / ब्रह्मचर्य आश्रम-शक्ति संरक्षण के पचीस वर्ष / कम शक्तिवाला ज्यादा कामुक / अधिक शक्ति-कामुकता उतनी ही कम / अस्वस्थ युग की मानसिक कामवासना / इंद्रियों का अनुभव-सशक्त गहरे अनुभव से / प्रथम आश्रम–श्रम, साधना और संकल्प का / सुप्त अंतस संभावनाओं को जगाने का काल / सह-जीवन
और समान जीवन का काल / स्पर्धामुक्त, महत्वाकांक्षा-शून्य जीवन का आधार / कामवासना में उतरने के पहले ही ब्रह्मचर्य के आनंद का स्वाद जरूरी / कामवासना समाज के प्रति एक कर्तव्य / वानप्रस्थ आश्रम में अनुभवों का हस्तांतरण-गृहस्थ बच्चों को / संन्यास आश्रम-जीवन का संध्याकाल-प्रभु स्मरण व पूर्ण विश्राम का काल / संन्यास को उपलब्ध, निर्वासनायुक्त-वृद्ध गुरु-परमात्मा जैसा / आज विद्यार्थी और शिक्षक-समान तल पर-आदर संभव नहीं / गुरु और शिष्य में चेतना-तल का अस्तित्वगत भेद / जीवन का शिखर-संन्यास आश्रम / न विरक्त, न आसक्त-वरन अनासक्त / न तो आसक्त साक्षी है-न विरक्त / दोनों से अमंगलकारी तरंगों का उठना / अनासक्त व्यक्ति से ही लोक-मंगल संभव / आसक्ति और विरक्ति का आपस में बदलना / अनासक्त कर्म-साधना है या सिद्धि का परिणाम? / दोनों है । चलना-पहुंचने का ही एक हिस्सा / सिद्धि है-निरभ्यास अनासक्ति / निन्यानबे प्रतिशत आदमी नकल में जीते हैं / नकल ही करनी हो तो श्रेष्ठ की करें / बच्चों को सम्यक अनुशासन, सम्यक संस्कार देना जरूरी।
वर्ण व्यवस्था की वैज्ञानिक पुनर्स्थापना ... 385
दूसरे रुक न जाएं, इसलिए सिद्ध पुरुष भी चलते रहते हैं | अवतार अर्थात वह सिद्ध जो करुणावश अज्ञानियों के बीच खड़ा है / दूसरों के लिए जीना-श्रेष्ठतम कर्म / आज वर्ण व्यवस्था को वापस लाना क्या उचित है? / वर्ण और आश्रम व्यवस्था सनातन सत्य है / वर्ण में ऊंच-नीच का भाव आने से आज उसमें सड़ांध / वर्ण व्यवस्था में भिन्नता की स्वीकृति थी—मूल्यांकन नहीं था / वर्ण व्यवस्था लौटेगी-और भी ज्यादा वैज्ञानिक होकर / चार टाइप के लोग / वर्ण व्यवस्था उसी दिन असत्य होगी, जब आदमी मशीन हो जाएगा / जीवन के नियम को इनकार कर सकते हैं, नष्ट नहीं / एक से होंगे आदमी यदि आत्मा नष्ट हो जाए / व्यक्तित्व की भिन्नता कायम रहनी चाहिए / व्यक्ति-भिन्नता पर ही लोकतंत्र संभव / भिन्नता का सौंदर्य / सभी वैज्ञानिक ब्राह्मण / राकफेलर, मार्गन, रथचाइल्ड वैश्य हैं / नीत्से क्षत्रिय है / ब्राह्मण निर्मित धर्म-ध्यान केंद्रित / शूद्र निर्मित धर्म-सेवा केंद्रित / चार टाइप के व्यक्ति-चार टाइप के धर्म / स्त्री-पुरुष के जैविक भेद को तोड़ने से हानि / ज्यादा भिन्नता से ज्यादा आकर्षण / जीवन एक आर्केस्ट्रा है-विपरीत, विभिन्न स्वरों का संतुलन / आप बच्चों को संन्यास क्यों देते हैं? / आज आश्रम व्यवस्था का क्रम टूट गया है / पिछले जन्म की संन्यास यात्रा / अपवाद भी होते हैं / संन्यास की आकांक्षा-पिछले जन्म के अनुभव पर आधारित / सब संन्यासी न होंगे / संन्यास जीवन का सुंदरतम फूल / अच्छे को करके असफल भी हो जाना ठीक है / वृद्ध का परिवार से विरक्त हो जाना सम्यक- आज तो उम्र के साथ कोई पकता ही नहीं / संन्यास की नयी धारणा / चौथे चरण में संन्यास की प्रतीक्षा अब कठिन / संन्यास की संक्रमणकालीन धारणा / संन्यास की प्राथमिक धारणा–किसी दिन अंतिम संन्यास की आशा / नव-संन्यास-वानप्रस्थ के निकट / हे अर्जुन, अनासक्त होकर कर्म कर / अभिनेता की भांति जी /