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गीता-दर्शन अध्याय 3
स्वधर्म की खोज ... 299
मनुष्य की चिंतना की दो धाराएं : सांख्य (ज्ञान निष्ठा) और योग (कर्म निष्ठा) / अर्जुन आत्म-ज्ञान में नहीं-भागने में उत्सुक / क्या योग और सांख्य परिपूरक हैं? उनमें विरोध क्यों? / अंतर्मुखी व्यक्ति के लिए सांख्य और बहिर्मुखी के लिए योग / ब्राह्मण अंतर्मुखी है और क्षत्रिय बहिर्मुखी / अर्जुन-आदर्श क्षत्रिय / सांख्य निष्ठा श्रेष्ठतम है / कुछ मात्रा में अंतर्मुखी और कुछ मात्रा में बहिर्मुखी व्यक्ति के लिए क्या सांख्य और योग दोनों जरूरी? / एक ही मार्ग से यात्रा संभव / गीता की विशेषताः गीता समस्त मार्गों का विचार है / जिस मार्ग की कृष्ण बात करेंगे उसे ही वे श्रेष्ठ कहेंगे / प्रत्येक निष्ठा अपने में परम है / क्या योग साधते-साधते सांख्य में जाना उपयोगी है? / बहिर्मुखी पाता है-मैं ब्रह्म हूं, अंतर्मुखी पाता है-मैं शून्य हूं / बहिर्मुखी = विधायक, पूर्ण की भाषा, श्रद्धा / अंतर्मुखी = निषेधात्मक, शून्य की भाषा, तर्क / अनिश्चय से भरे चित्त के लिए सब कुछ में अनिश्चय / अर्जुन का अर्थ-टेढ़ा-मेढ़ा / संबोधन-हे निष्पाप अर्जुन का राज / निष्पापता के भरोसे से पाप की संभावना क्षीण / सामूहिक अचेतन मन में गंगा स्नान का महत्व-प्रभावकारी / निष्कर्म-कर्म का नहीं-कर्ता का अभाव है / त्याग से परमात्मा नहीं मिलता-परमात्मा मिल जाए तो त्याग घटित / कर्म को चलने दो—कर्ता को जाने दो / निमित्त मात्र हो जा / ओरिजिनल सिन–कर्ता का भाव / चिंता, संताप-कर्ता की छाया।
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कर्ता का भ्रम ... 317
जीते जी कर्म-त्याग असंभव / कर्म के अभाव में उपद्रव / कर्म नहीं बदलो कर्ता को / जितना ज्यादा 'मेरा' उतना ज्यादा 'मैं' / मित्रता या शत्रुता का आधार-मैं / ब्राह्मण है अंतर्मुखी और क्षत्रिय है बहिर्मुखी, वैश्य और शद्र-किस कोटि में? / शद्र अंतर्मुखी है विकसित होकर ब्राह्मण / वैश्य बहिर्मुखी है—विकसित होकर क्षत्रिय / जन्म से सभी शद्र या वैश्य / वर्ण-अर्थात व्यक्तित्व के मनोवैज्ञानिक टाइप / टाइप की पहचान कीमती / शद्र ब्राह्मण नहीं बनना चाहता-ब्राह्मण को नीचे खींचकर शूद्र बनाना चाहता है । सत्य में समन्वय (कंप्रोमाइज)? / दो दृष्टिकोण-विधेयात्मक और निषेधात्मक / क्या दुष्कर्म का प्रेरक भी परमात्मा है? / निरहंकारी से बुरा कृत्य असंभव / नैतिकता-अहंकार पर ही आधारित / वासना का मूल-स्रोत-अहंकार / ध्यान साधना से ज्ञान या ध्यान एक कर्म है? / ध्यान-अंतर्मुखी व बहिर्मुखी दोनों के लिए प्रभावकारी / इंद्रियों का दमन मूढ़ता है / वासनाएं इंद्रियों में नहीं-मन में हैं / अज्ञान से बुरा है-पाखंड / मिथ्याचरण से जीवन में जटिलता / कर्म और क्रिया में अंतर? / क्रिया में भी अहंकार छिपा हुआ / क्रियाओं का भी आधार-जीवेषणा / अनैच्छिक जीवेषणा / कर्ता का भ्रम।