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परमात्म समर्पित कर्म ... 335
वासना की जड़ें शरीर व इंद्रियों में नहीं-मन में / संकल्प का अर्थ–दमन नहीं, स्वयं की मौजूदगी का अनुभव / संकल्प के आते ही शरीर मांग बंद कर देता है | कभी शरीर को आज्ञा दी है? / संकल्पवान होना ही आत्मवान होना है / मन से इंद्रियों को वश में करें या मन को ही विसर्जित करें? / पहले संगठित संकल्प-फिर समर्पण / वासना से आत्मा, फिर आत्मा से परमात्मा / सिर नहीं-स्वयं को चरणों पर रखना होगा / कमजोर समर्पण नहीं कर सकता / सिर झुकाना नहीं-गरदन ही चढ़ा देना / शास्त्रसम्मत स्वधर्म अर्थात बुद्ध पुरुषों द्वारा सम्मत स्वधर्म / वर्ण का विभाजन-हाइरेरकी नहीं-क्षैतजिक विभाजन / वर्ण का त्याग–अहितकर / वर्ण स्वधर्मानुकूल व्यक्तित्व के विकास की व्यवस्था / वर्ण व्यवस्था में आत्माओं को चुनावपूर्वक विकास की सुविधा / अनेक जन्मों की श्रृंखला में स्पेशलाइजेशन / अनेक-अनेक जन्मों से अर्जुन क्षत्रिय है / सुनियोजित आत्मिक विकास / संकल्प और इंद्रियों के दमन में फर्क? / संकल्प विधायक और दमन नकारात्मक कृत्य है / संकल्प है नयी शक्ति को जगाना और दमन है वासनाओं को दबाना / संकल्प का तिब्बती प्रयोग हीट योग / संकल्प हो तो वासना चुप / वासनाओं की फिक्र छोड़ो-ब्रह्म में डूबो / दमन और विपरीत परिणाम का नियम / कर्मों को यज्ञ की तरह कर / बंधन का मूल-मेरा / यज्ञ अर्थात परमात्म समर्पित कर्म / बोध घटना : नानक का कर्ता विसर्जन / 'मैं बंधता है और 'मेरा' बांधता है / सष्टि परमात्मा का सजन नहीं-परमात्मा का स्वभाव है / कर्ताभाव खोते ही व्यक्ति स्रष्टा / परमात्मा का अहंशून्य कृत्य-सृष्टि / अनुपस्थित-सा, शून्य-सा परमात्मा / यज्ञ अर्थात कर्ताशून्य कर्म / देवता अर्थात श्रेष्ठ मृतात्मा / शभ और अहंशन्य कर्म में देवताओं का सहारा / अशुभ कर्म में प्रेतात्माओं का सहारा / श्रेष्ठ, निकृष्ट और साधारण मृत आत्माएं / मृतात्माओं के अस्तित्व के वैज्ञानिक प्रमाण।
समर्पित जीवन का विज्ञान ... 353
यज्ञरूपी कर्म से दिव्य शक्तियां प्रसन्न / मांग से हृदय बंद, दान से हृदय का खुलना / मांग के साथ भय भी मौजूद / भिखारी मन / गलत आदमी गलत को ही मांगता है / प्रार्थना–मांग नहीं, धन्यवाद है / भक्तों की मांग और तथाकथित साधुओं की सप्लाई / बांटने से आनंद बढ़ता है / आनंद भी है-क्रास वेंटिलेशन की तरह / न बांटने वाला चोर है / आनंद एक सतत प्रवाह हो / पाना-देना–पानाः एक वर्तुलाकार गति / यज्ञ से बचे हुए अन्न का अर्थ? / सामान्य अर्थ और विशेष अर्थ / निकृष्ट दान-बेकार की चीजों को देना / आनंद है-'दान' की छाया / देने वाले व्यक्ति का जीवन यज्ञ बन जाता है / क्या दुख को भी बांट देना चाहिए? / दुख बांटने की असफल कोशिश / दुख देने की कोशिश में दुख का बढ़ना / आनंद बांटने से–चेतना का विस्तार / चेतना के विस्तार से-परमात्मा को पाने की क्षमता का बढ़ना / किसी को दुख देने पर आप छोटे / दुख है आनंद को पाने की अक्षमता / पाषाण हृदय व्यक्ति / पृथ्वी माता, आकाश पिता / पश्चिम में : 'प्रकृति पर विजय' की भाषा / पूर्व और पश्चिम के दृष्टिकोण में बुनियादी फर्क / अन्न ब्रह्म है / वर्षा से अन्न-यज्ञ से वर्षा / प्रकृति और मनुष्य के बीच का आत्मिक लेन-देन / स्त्री-पुरुष की संख्या का रहस्यपूर्ण संतुलन / इकोलाजी-एक नया विज्ञान / जीवनः एक संयुक्त परिवार / वृक्ष बादलों को (वर्षा को) आमंत्रित करते हैं / समर्पित जीवन से प्रकृति और परमात्मा प्रसन्न / यज्ञ अर्थात परमात्मा को समर्पित लोगों का कर्म / संगीत से पौधों का विकास / अहंकार की दूषित तरंगें। आकर्षक और विकर्षक चित्त-तरंगें/ मनुष्य का आज प्रकृति से तालमेल टूट गया है | क्या हमारे आज के यज्ञ मूर्खतापूर्ण हैं? / यज्ञ की सार्थकता यज्ञ करने वाले की चित्त-दशा (चेतना) पर निर्भर / अहंशून्य चेतना में परमात्मा का अवतरण / उनकी लिखी किताबें-परमात्मा की लिखी हैं। ज्ञान-परमात्मा का स्वभाव है और अज्ञान-अहंकार का / अज्ञान से निकले कर्म से-बंधन, दुख, संताप, पीड़ा का जन्म / ज्ञान से निकले कर्म से—मुक्ति, आनंद और निश्चितता।