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विषय
पृ० सं०
विद्यामंत्र : भूताविष्टः देव के श्राने
न श्राने के काररण ।
गणधर - ८ ( श्रकंपित ) नारक है क्या ?
गरणघर-६ [ अचल भ्राता ] क्या पुण्य पाप है ?
६३.
- इन्द्रिय- प्रत्यक्ष वस्तुतः प्रत्यक्ष नहीं ६३
उत्कृष्ट पाप का फल कहां ?
६४
(घ )
६२
पर प्रभाव
अकेले पुण्य के प्रति ह्रास से दुःखोत्कर्षं न बने
- निश्चय से मिश्रयोग नहीं होता:, संक्रम में मिश्रित योग नहीं : पुण्य की ४६ प्रकृतियां
६५
१. अकेला पुण्य, २. अकेला पाप, ३. मिश्र, ४. स्वतन्त्र उभय. ५. एक भी नहीं मात्र स्वभाव कारण । -१.२,३,५, ये चार विकल्प गलत ६५, काररणानुमान - कार्यानुमान | - पुण्य पाप श्ररूपी क्यों नहीं ? कारण के समानासमान स्वपर पर्याय
६
मूर्त ब्राह्मी का अमूर्त ज्ञान
६८
ह
εξ
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विषय
गणधर १० ( मेतार्य) परलोक है क्या ?
१०२
परलोक की युक्तिया, घड़े में नित्यानित्यता : जो उत्पत्तिमान हो वह नित्य नहीं होता,
उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य |
पृ० सं०
१०३
१०३
गरणधर ११ (प्रभास) मोक्ष १०५ दीपक के पीछे अंधकारः पुद्गलप्रयोग से स्वर्ण मिट्टी का वियोगः नारक तिर्यंचादि ये जीब के पर्यायमात्र
१०५
धर्म, - १
जीव कर्म से सर्जित नहीं । सहभू, २ - उपाधि-प्रयोज्य । अनादि भी राग द्वेष का नाश विकार, १ - निवर्त्य. २ - अनिवत्यं 'अशरोरं वा वसंत' का अर्थ, मोक्ष में ज्ञान की सत्ता ज्ञान सर्व विषयक क्यों ? मोक्ष में सुख कैसे ? विषय सुख - रति अरति का प्रतिकार मात्र
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१०७
११०
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संयोग तक सुख क्यों नहीं ?
संसारसुख सांयोगिक-सापेक्षविपाककटु
१११
११ को त्रिपदी और गणधर - पद ११२