________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शय्यम्भवसूरिः
आप के माता पिता के नाम अप्राप्य है । आप यजुर्वेदीय; वक्षस, गोत्रीय थे, जब आपने दीक्षा अंगीकार की थी, तब आपकी अद्धोगिनी गर्भवती थी। क्रमशः पुत्र उत्पन्न हुआ, मनक नाम दिया । मनक ने जन्मते ही सुना कि मेरे पिताने श्वेतांबर दीक्षा ग्रहण 18 की है। क्रमशः मनक ने भी आकर दीक्षा ग्रहण की, परंतु आचार्यश्रीने अपना पिता पुत्र का संबंध किसी से ज्ञापित न किया, I क्योंकि ऐसा करने से अन्य मुनि इनसे सेवा न लेंगे। बिना सेवा वैयावृत्य किये भवसमुद्र से निस्तार कैसे होगा ! यह लघु शिष्य का अल्पायु जान कर गुरुजीने इनके लिये सिद्धान्त से मुन्योचित धर्म प्रतिपादनात्मक विषय उद्धृत कर "दशवकालिक" सूत्र की
रचना कर पुत्र को पढ़ाया। छह मास के बाद बाळक स्वर्ग गया, तदनंतर सूरिजी उक्त नूतन सूत्र पुनः सिद्धान्त में सम्मिलित PI करने लगे, पर श्री संघ के रोकने पर शामिल न किया। शय्यंभव सूरिजी सर्व ६२ वर्ष का आयु पाल इ० पूर्व ४२८ में स्वर्ग गये ।
यशोभद्र सूरिःहै। इनका विस्तृत परिचय अलभ्य है। उपरोक्त उल्लेखों में आपने देखा एक आचार्य के पद पर एक ही आचार्य आते थे, पर
इनके बाद एक पद पर दो आचार्य अधिष्ठित पाये गये। कई स्थान में दोनो को भिन्न २ गिन संख्या में वृद्धि की हैं। आप सर्व 8| ८६ वर्ष का आयु पाल ३७८ इ० पूर्व स्वर्गवासी हुए। है|संभूतिविजय और भद्रबाहुसूरि:
संभूतिविजयसूरिजी का परिचय अप्राप्य है । आप ९० वर्ष की अवस्था में ३७० इ० पू० में स्वर्गवासी हुए ।
CACANCHAARCARTOONtos
For Private and Personal Use Only