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पवित्र व उच्च है । आप ही एक ऐसे जैन मुनि है कि साहित्यिक रचना में सफलतापूर्वक । जैन दर्शन का निचोड़ आपने तस्वार्थ सूत्र के दश अध्यायों में किया । इनकी यह कृति श्वेतांबर दिगंबर उभय सम्प्रदायवाले बहूत आदर के हेमचंद्रसूरि आपको संग्रहकार मानते है" ।
संस्कृत भाषा का सर्वप्रथम उपयोग किया, वह भी भर दिया हैं। ये ग्रन्थ पाटलीपुत्र-पटना में निर्माण साथ मानते हैं. और अध्ययन करते है । आचार्य
प्रशमरति प्रकरण, श्रावक प्रज्ञप्ति, पूजा प्रकरण, प्रतिष्ठाकल्प ( प्रकृत वृति पृ० ५६ ) आदि ग्रन्थ आप के विनिर्मित है, जो जैन साहित्य को गौरव प्रदान करते है । कहा जाता है आपने पंञ्चशत प्रकरणात्मक ग्रन्थों की रचना की थी" ।
आपका विस्तृत परिचय सुप्रसिद्ध विद्वान् श्रीसुखलालजी ने नूतन प्रकाशित हिन्दी तत्त्वार्थ सूत्र में दिया है जो अत्यन्त उपयोगी और मनन योग्य हैं।
हरिभद्रसूरि :
ऐसा कौन भारतीय साहित्यान्वेषी होगा जो आचार्यवर्य्य श्रीमान हरिभद्रसूरि जैसे अद्वितीय प्रतिभासंपन्न जैनाचार्य के पुण्य नाम से अनिभिज्ञ हो । विश्व का ऐसा कौन फिलासफर होगा जिसे आचार्यश्री के दर्शनशास्त्रों का ज्ञान न हो, आप साहित्य के
१९. उपोमास्वातिं संग्रहीतारः । सिद्धम २-२-३९ ।
२०. उमास्वाति वाचकश्च कौमिषणणिगोत्रः पञ्चशत=संस्कृत = प्रकरण प्रसिद्धस्तत्रैव तत्वार्थाधिगं सभाप्य व्यरचयत् चतुरशीतिवादशालाश्च तत्रैव विदुषां परितोषाय पर्येणंसिषुः । विविध तीर्थकल्प पृ० ६९ ।
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